भेड़ की 5 उन्नत नस्लें जो आपको कर देंगी मालामाल, ऊन और मांस से होगी मोटी कमाई

अगर आप खेती-बाड़ी के साथ अतिरिक्त आमदनी चाहते हैं, तो भेड़ पालन आपके लिए शानदार विकल्प है. देश में कई नस्लें ऐसी हैं जो सालाना 5 किलो तक ऊन और मांस दोनों देती हैं. जानिए कौन-सी नस्ल सबसे ज्यादा फायदे वाली है.

Kisan India
नोएडा | Published: 2 Nov, 2025 | 09:00 PM

Sheep Farming : अगर आप गांव में रहते हैं और खेती-बाड़ी के साथ कोई ऐसा काम करना चाहते हैं जिससे हर साल बढ़िया आमदनी हो, तो भेड़ पालन (Sheep Farming) आपके लिए शानदार विकल्प है. भेड़ें न सिर्फ ऊन देती हैं, बल्कि मांस और दूध का भी अच्छा स्रोत होती हैं. कई किसान इनसे मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. लेकिन भेड़ पालन शुरू करने से पहले उनकी नस्लों के बारे में जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि हर नस्ल की अपनी खासियत और पहचान होती है. आज हम आपको ऐसी 5 लोकप्रिय नस्लों के बारे में बताएंगे. ये नस्लें हैं गद्दी, दक्कनी, मांड्या, नेल्लोर और मारवाड़ी, जो ऊन और मांस दोनों के लिए मशहूर हैं.

गद्दी भेड़

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गद्दी भेड़ें मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों  में पाई जाती हैं. ये आकार में छोटी लेकिन ऊन के लिए बेहद उपयोगी होती हैं. इनकी सबसे खास बात यह है कि नर भेड़ के सींग होते हैं जबकि मादा भेड़ सींग रहित होती है. इनकी ऊन चमकदार और मुलायम होती है, जिसे साल में तीन बार काटा जाता है. एक गद्दी भेड़ से औसतन 1.15 किलो ऊन सालाना प्राप्त होता है. यह ऊन ऊनी कपड़े, टोपी और स्थानीय शॉल बनाने में काम आता है. पहाड़ी इलाकों में रहने वाले किसान इसे कमाई की चलती फिरती मशीन भी कहते हैं.

दक्कनी भेड़

दक्कनी नस्ल राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पाई जाती है. यह नस्ल भूरे या काले रंग की होती है और दिखने में मजबूत होती है. इस भेड़ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे ऊन और मटन दोनों के लिए पाला जाता है. एक भेड़ साल में करीब 5 किलो ऊन देती है, हालांकि इसकी ऊन थोड़ी मोटी होती है और इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से कंबल या कालीन बनाने में किया जाता है. इन भेड़ों की देखभाल आसान होती है और ये सूखे इलाकों में भी अच्छे से जीवित रह सकती हैं. इसलिए किसान इसे कम खर्च और ज्यादा मुनाफे वाली नस्ल मानते हैं.

मांड्या भेड़

मांड्या भेड़ें कर्नाटक के मांड्या जिले में पाई जाती हैं. यह नस्ल सफ़ेद रंग की होती है, लेकिन कभी-कभी इसके मुंह का रंग हल्का भूरा होता है. यह भेड़ आकार में छोटी होती है लेकिन मांस उत्पादन  के लिए बेहद लोकप्रिय है. नर भेड़ का औसत वजन करीब 35 किलो, जबकि मादा का वजन लगभग 25 किलो होता है. इनका मांस स्वादिष्ट और मुलायम होता है, जिससे इनकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. किसानों के मुताबिक, मांड्या भेड़ों का पालन कम लागत, ज्यादा फायदा वाला सौदा साबित होता है.

नेल्लोर भेड़

नेल्लोर नस्ल  की भेड़ें मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ इलाकों में पाई जाती हैं. यह भारत की सबसे ऊंची भेड़ मानी जाती है. इनका शरीर लंबा होता है, बाल छोटे होते हैं और कान लंबे व झुके हुए रहते हैं. दिखने में ये भेड़ें बकरी जैसी लगती हैं, लेकिन ताकत में बहुत आगे होती हैं. नर भेड़ का वजन 36-38 किलो तक होता है, जबकि मादा का वजन 28-30 किलो तक पहुंच जाता है. इनका चेहरा लंबा और शरीर लाल रंग का होता है, इसलिए इन्हें नेल्लोर रेड (Nellore Red) कहा जाता है. ये भेड़ें गर्म इलाकों में भी आसानी से पाली जा सकती हैं और मटन क्वालिटी के लिए बहुत मशहूर हैं.

मारवाड़ी भेड़

मारवाड़ी भेड़ राजस्थान के जोधपुर, जयपुर और नागौर जैसे इलाकों में पाई जाती है. इसके पैर लंबे, चेहरा काला और नाक उभरी हुई होती है. यह गर्म और सूखे इलाकों की सबसे टिकाऊ नस्ल मानी जाती है. इनकी पूंछ छोटी और नुकीली होती है. यह नस्ल न सिर्फ राजस्थान में बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में भी पाई जाती है. मारवाड़ी भेड़ की ऊन मोटी होती है, जो खासकर कालीन और मोटे कंबल बनाने के लिए उपयोगी होती है. यह नस्ल कम पानी और कम चारे में भी अच्छा उत्पादन देती है, इसलिए इसे किसान रेगिस्तान की रानी कहते हैं.

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Published: 2 Nov, 2025 | 09:00 PM

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