आपने अब तक कई तरह के म्यूजियम देखे होंगे- किसी में तलवारें होती हैं, किसी में पुरानी मूर्तियां, तो कहीं पुराने सिक्कों का कलेक्शन. लेकिन जरा सोचिए, अगर कोई म्यूजियम ऐसा हो जहां शो-केस में हरी-हरी घास लगी हो… सुनकर अजीब लगता है ना? लेकिन ये बिल्कुल सच है.
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में एक ऐसा अनोखा Fodder Grass Museum है, जहां अलग-अलग किस्म की चारा घास उगाई जाती है. यह म्यूजियम लगभग आधा एकड़ जमीन पर फैला हुआ है और यह असल में पशुओं के खाने यानी चारे का विशाल प्रदर्शनी स्थल है.
कब शुरू हुआ यह अनोखा म्यूजियम?
यह अनोखा Fodder Grass Museum केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित Valiyathura के स्टेट फॉडर फार्म परिसर में बना है, जो डेयरी डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के अधीन आता है. इस फॉडर फार्म की शुरुआत वर्ष 1962 में हुई थी, जबकि म्यूजियम को 2014-15 में विकसित किया गया. यहां 20 से ज्यादा किस्मों की चारा घास उगाई जाती है, जिनमें पुराने और आधुनिक दोनों प्रकार के घास शामिल हैं. खास बात यह है कि जो भी किसान या डेयरी फार्मिंग से जुड़े लोग प्रशिक्षण के लिए यहां आते हैं, उन्हें इस म्यूजियम की सैर भी कराई जाती है, ताकि वे घास की किस्मों को देखकर सही चुनाव कर सकें.
पुरानी घास से लेकर हाईब्रिड तक
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार फार्म के असिस्टेंट डायरेक्टर फहद एम बताते हैं कि पहले यहां Para Grass और Guinea Grass जैसी पारंपरिक घासों की ही खेती होती थी, लेकिन समय के साथ किसानों की जरूरतें बदलीं तो इन्हें हाई-यील्डिंग हाइब्रिड घासों से बदल दिया गया. आज इस म्यूजियम में Signal Grass, Congo Signal Grass, Setaria, Gamba Grass, Killikulam और Thumboormuzhi जैसी कई दुर्लभ किस्में भी देखने को मिलती हैं. हालांकि ये किस्में कम उत्पादन वाली होती हैं, इसलिए किसान इन्हें ज्यादा पसंद नहीं करते. किसानों को ऐसी घास चाहिए जो तेजी से बढ़े, प्रोटीन से भरपूर हो और दूध उत्पादन बढ़ाने में मदद करे-यही वजह है कि अब हाइब्रिड घासों की मांग सबसे ज्यादा है.
सबसे ज्यादा चर्चित है
इस म्यूजियम में सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है Bajra Napier Hybrid Grass, जिसे तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर ने विकसित किया है. इसकी कुल चार मुख्य वैराइटी हैं- CO3, CO4, CO5 और CO6 और खास बात यह है कि इन सभी का सैंपल म्यूजियम में मौजूद है. फॉडर फार्म में सबसे ज्यादा CO3 वैराइंट की खेती की जाती है, जबकि CO5 को भी छोटे स्तर पर लगाया गया है. इसके अलावा Super Napier और Red Napier जैसी हाई-प्रोटीन वाली हाइब्रिड घासें भी यहां खूब उगाई जाती हैं, जिन्हें किसान तेजी से अपना रहे हैं क्योंकि इनसे उत्पादन ज्यादा और खर्च कम होता है.
केरल की अपनी घास
केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तीन खास हाइब्रिड चारा घास विकसित की हैं- सुगुणा (Suguna), सुप्रिया (Supriya) और सुस्थिरा (Susthira). इनमें से Suguna और Supriya के नमूने अभी Fodder Grass Museum में प्रदर्शित किए गए हैं, ताकि किसान इन्हें नजदीक से देख सकें और इनके गुण समझ सकें. वहीं Susthira को भी जल्द यहां लाने की योजना है. इन किस्मों की खासियत यह है कि ये तेजी से बढ़ती हैं, पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं और एक ही बार लगाने पर लंबे समय तक हरा चारा देती रहती हैं. इससे डेयरी किसानों को लगातार चारे की सुविधा मिलती रहती है.
सिर्फ घास ही नहीं, पेड़-पौधे भी हैं चारा के काम के
इस म्यूजियम में सिर्फ घास ही नहीं, बल्कि चारा देने वाले कई पेड़-पौधे भी लगाए गए हैं. यहां Agathi (अगाथी), Drumstick यानी सहजन, Subabul और Stylosanthes जैसी विशेष चारा फसलें भी उगाई जाती हैं. ये पौधे खासतौर पर उन किसानों के लिए उपयोगी हैं जो अपने पशुओं को सिर्फ घास नहीं, बल्कि हरी पत्तियों वाला पोषक चारा भी देना चाहते हैं. इससे पशुओं को बेहतर प्रोटीन मिलता है और दूध उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है.
किसानों के लिए बड़ा फायदा
ऐसा म्यूजियम देशभर के किसानों के लिए एक बेहतरीन मॉडल साबित हो सकता है. यहां किसान अलग-अलग किस्म की चारा घास को खुद देखकर उनकी ग्रोथ, पत्तियों का आकार और प्रोटीन कंटेंट समझ सकते हैं. इससे वे आसानी से तय कर सकते हैं कि उनके खेत या डेयरी फार्म के लिए कौन सी घास सबसे बेहतर रहेगी. आज डेयरी फार्मिंग में सबसे ज्यादा खर्च चारे पर होता है. अगर किसान हाई-यील्डिंग घास अपनाते हैं तो चारे का खर्च काफी कम हो सकता है, दूध उत्पादन बढ़ेगा और मुनाफा भी ज्यादा मिलेगा.
ये सिर्फ म्यूजियम नहीं, भविष्य की डेयरी क्रांति
भारत जैसे देश में जहां दूध उत्पादन दुनिया में नंबर 1 है, वहां अगर चारे की गुणवत्ता सुधारे जाए तो किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं. अगर एक छोटा-सा आधा एकड़ का म्यूज़ियम ऐसा बदलाव ला सकता है, तो देशभर में ऐसे मॉडल से लाखों किसान फायदे में रह सकते हैं.