Farming Tips: गोल मिर्च, जिसे ज्यादातर लोग शिमला मिर्च के नाम से जानते हैं, आज किसानों के लिए सबसे फायदेमंद सब्जियों में शामिल हो चुकी है. इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है, चाहे होटल हों, रेस्टोरेंट हों या घरेलू बाजार. पौष्टिकता, रंग और स्वाद के कारण उपभोक्ता इसे खूब पसंद करते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि शिमला मिर्च की खेती कम लागत में भी अच्छी उपज देती है और थोड़ी आधुनिक तकनीक जोड़ने पर यह फसल किसानों को कई गुना अधिक मुनाफा दिला सकती है.
सही मौसम से बढ़ता उत्पादन
शिमला मिर्च समशीतोष्ण जलवायु की फसल है. यह न ज्यादा गर्मी सहन कर पाती है, न अत्यधिक ठंड. 20°C से 25°C तापमान इसके लिए सबसे अनुकूल माना जाता है. इसी वजह से मैदानी इलाकों में इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी-मार्च इसका सही समय है. सही मौसम चुनने से पौधे मजबूत बनते हैं और उत्पादन भी अधिक मिलता है.
मिट्टी और खेत की तैयारी
शिमला मिर्च के लिए दोमट या रेतीली-दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है. मिट्टी में पानी रुकना इस फसल के लिए नुकसानदेह होता है, इसलिए जल निकासी का ध्यान बेहद जरूरी है. pH मान 6.0 से 7.0 के बीच हो तो फसल तेजी से बढ़ती है.
खेत तैयार करते समय मिट्टी को 2-3 बार अच्छी तरह जोतना चाहिए और सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाने से पौधों को प्राकृतिक पोषण मिलता है. खेत समतल होने से सिंचाई भी बेहतर तरीके से होती है.
उन्नत किस्में
आज बाजार में कई हाई-यील्डिंग और रोग प्रतिरोधक किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें इंड्रा F1, अरिकाविक F1, भारती और कैलिफोर्निया वंडर खासतौर पर लोकप्रिय हैं. ये किस्में न केवल अधिक उपज देती हैं बल्कि रोगों का सामना भी बेहतर तरीके से करती हैं, जिससे किसानों का जोखिम काफी कम हो जाता है.
बीज बुवाई और रोपाई
शिमला मिर्च की खेती आमतौर पर नर्सरी से शुरू होती है. नर्सरी में 1 से 1.5 सेमी गहराई पर बीज बोए जाते हैं, और लगभग 30-35 दिनों में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
मुख्य खेत में कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए. सही दूरी से पौधे हवा और धूप अच्छी तरह प्राप्त करते हैं, जिससे रोगों का खतरा कम होता है.
सिंचाई और पोषण
शिमला मिर्च को बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन नियमित सिंचाई जरूरी है. गर्मी में 5–6 दिन और सर्दी में 8–10 दिन के अंतराल पर सिंचाई बेहतर रहती है. अगर ड्रिप सिस्टम का उपयोग किया जाए तो पानी की बचत के साथ-साथ पौधों को बराबर नमी मिलती है.
पौधों को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा देने से फल का आकार बढ़ता है और उत्पादन भी अधिक मिलता है. उर्वरकों को दो से तीन किस्तों में देना सबसे अच्छा तरीका माना जाता है.
कीट और रोग नियंत्रण
शिमला मिर्च में झुलसा रोग, फफूंदी और मोजैक वायरस जैसे रोग आमतौर पर पाए जाते हैं. इनसे बचने के लिए नीम आधारित जैविक घोल या हल्के फफूंदनाशक का छिड़काव प्रभावी रहता है. रोगग्रस्त पौधों को तुरंत हटाने से बीमारी के फैलाव को रोका जा सकता है.
कटाई और उपज
रोपाई के लगभग 60-70 दिनों बाद शिमला मिर्च की तुड़ाई शुरू हो जाती है. एक स्वस्थ पौधा 1 से 1.5 किलोग्राम तक उपज दे सकता है. खुले खेतों में 200–250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और पॉलीहाउस में 300–350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन संभव है.
आमदनी और मुनाफा
कम लागत और अधिक उपज के कारण शिमला मिर्च किसानों के लिए कमाई का बड़ा साधन बन गई है. एक हेक्टेयर में इसकी लागत लगभग 60,000 से 80,000 रुपये तक आती है, जबकि आय 2 लाख से 3.5 लाख रुपये तक हो सकती है. इस तरह शुद्ध लाभ 1.5 लाख से 2.5 लाख रुपये तक मिल जाता है. यदि किसान पॉलीहाउस तकनीक अपनाएं तो मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है.