Paddy Cultivation: हरियाणा और पंजाब धान की सरकारी खरीदी शुरू हो गई है. लेकिन बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों में अभी धान की बालियां ही आ रही हैं. ऐसे में इन राज्यों के किसानों के लिए ये समय बहुत ही अहम है. क्योंकि बालियां आने के समय धान की फसल में रोग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है. अगर इस समय किसान सही तरह से फसल की देखरेख नहीं करते हैं, तो रोग की चपेट में आकर फसल प्रभावित हो सकती है. इससे उत्पादन में गिरावट आएगी और किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसलिए जरूरी है कि धान की फसल में बालियां आते समय किसान जरूरी सावधानी बरतें और नीचे बताए गए तरीकों को अपनाएं.
एक्सपर्ट के मुताबिक, ऐसा कई बार देखा गया है कि बाली निकलने के बाद कई बार बालियां काली पड़ जाती हैं. ऐसे में बालियों के अंदर दाने नहीं बनते हैं, जिससे काफी नुकसान होता है. यह समस्या मुख्य रूप से दो बीमारियां बैक्टीरियल ब्लाइट और शीथ ब्लाइट के कारण होती है. शुरुआत में यह पत्तियों पर धब्बों के रूप में दिखती है और धीरे-धीरे बालियों तक पहुंच जाती है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर ये बीमारी बाली निकलने से पहले लग जाए, तो इसे कंट्रोल करना बेहद मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह सीधे दानों को नुकसान पहुंचाती है.
खेत में इस दवा का करें छिड़काव
अगर किसान इस बीमारी से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो तुरंत खेत में वेलिडामाइसिन दवा का छिड़काव करें. इसके लिए 1 लीटर पानी में 1 मिली वेलिडामाइसिन मिलाएं और फसल पर छिड़कें. एक बीघा खेत के लिए 300 से 400 लीटर पानी में 300 से 400 मिली दवा मिलाकर छिड़काव करें. ध्यान रहे, दवा का छिड़काव तब करें जब बारिश न हो रही हो. इससे बीमारी पर अच्छा नियंत्रण मिलता है और फसल स्वस्थ रहती है. ऐसे में अच्छी पैदावार भी होगी और किसानों का मुनाफा भी काफी अच्छा होगा.
फाल्स स्मट रोग भी धान के लिए है खतरनाक
वहीं, फाल्स स्मट भी धान की फसल के लिए बहुत ही घातक बीमारी है. ये बीमारी भी धान की बालियों पर ही लगती है. एक्सपर्ट के मुताबिक, यह एक फफूंद जनित बीमारी है जो धान की फसल को प्रभावित करती है. यह बीमारी Ustilaginoidea virens नामक फफूंद के कारण होती है. यह सीधे धान की बालियों पर हमला करता है और दानों की जगह हरे या काले रंग के छोटे-छोटे फफूंद जैसे धब्बे बनाता है. जब यह बीमारी खेत में फैलने लगती है, तो फसल खराब हो जाती है और पैदावार कम हो जाती है. इससे किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिलता और उन्हें आर्थिक नुकसान होता है.