Haryana News: हरियाणा में इस बार टारगेट से ज्यादा रिकॉर्ड धान की खरीदी हुई. राज्य ने कुल 62, 60,08,732.96 टन धान खरीदा, जो अनुमानित 54 लाख टन के लक्ष्य और पिछले साल की 53,98,661.91 टन खरीद से काफी ज्याद है. हालांकि, बाढ़, भारी बारिश और फसली बीमारियों की वजह से कटाई देर से हुई और पैदावार भी कम रही, फिर भी लगभग 8 लाख टन ज्यादा खरीद हुई. कई जिलों में असामान्य रूप से ज्यादा आवक को देखते हुए सरकार ने निरीक्षण भी बढ़ा दिए. आंकड़ों के अनुसार, फतेहाबाद सबसे आगे रहा, जहां इस बार 11,02,554.38 टन धान आया, जबकि पिछले साल 7,43,194.40 टन था. इसके बाद करनाल में 10,36,419.86 टन की खरीद हुई, जो पिछले साल के 8,40,370.07 टन से अधिक है.
इसी तरह कैथल में 9,24,984.04 टन और सिरसा में 4,19,116.91 टन की आवक रही, जो पिछले साल से काफी बढ़ोतरी है. यमुनानगर और हिसार में भी धान की आवक में हल्की बढ़त दर्ज हुई. कुछ जिलों में पिछले साल से कम आवक रही. जैसे कुरुक्षेत्र, जहां इस बार 10,01,001.38 टन धान आया, जबकि पिछले साल 10,30,333.29 टन था. अंबाला में भी थोड़ी कमी देखी गई. इसके अलावा पलवल, पानीपत, रोहतक, सोनीपत, फरीदाबाद और झज्जर जैसे छोटे जिलों में इस बार ज्यादा धान की खरीदी हुई है, जिसमें झज्जर में सबसे बड़ा उछाल दिखा.
कई क्षेत्रों में धान का कम उत्पादन
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कई क्षेत्रों में उत्पादन कम होने के बावजूद धान की आवक अचानक बढ़ गई, जिससे मुख्यमंत्री नैब सिंह सैनी और वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान इस पर गया. उन्होंने चावल मिलों, खरीद रिकॉर्ड और मंडी के गेट पास की फिजिकल जांच के आदेश दिए. सूत्रों का कहना है कि शक है कुछ धान और शायद पीडीएस चावल भी दूसरे राज्यों से हरियाणा की मंडियों में लाकर ‘प्रॉक्सी प्रोक्योरमेंट’ के तहत समायोजित किया गया हो.
सभी राइस मिलों की पूरी तरह फिजिकल जांच हो
HSAMB के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता, खासकर हाल की जांचों के बाद. उन्होंने बताया कि गैर-बासमती धान की बुवाई बढ़ने से कुछ बढ़ोतरी तो समझ आ सकती है, लेकिन इस बार जो उछाल दिखाई दे रहा है, वह असामान्य है और गहराई से जांच की मांग करता है. उनके अनुसार, सच्चाई तभी सामने आएगी जब सभी राइस मिलों की पूरी तरह फिजिकल जांच हो और मंडियों में आए धान के गेट पास का मिलों में पहुंचे माल से क्रॉस-वेरिफिकेशन किया जाए. यह साफ संकेत देता है कि खरीद व्यवस्था की खामियों का फायदा उठाने वाला कोई बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है.