Telangana News: तेलंगाना के कपास किसानों के लिए अच्छी खबर है. इस साल कपास की खरीद तकनीकी रूप से और मजबूत होने जा रही है. कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) ने किसानों से सीधे खरीद के लिए ‘कपास किसान’ मोबाइल ऐप लॉन्च किया है. मार्केटिंग विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इस पहल से खरीद प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी और बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी. पहले व्यापारी किसानों से सस्ते में कपास खरीदकर CCI को एमएसपी पर बेचते थे, जिसे अब रोका जाएगा.
तेलंगाना टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ये ऐप सबसे पहले तेलंगाना के मेडक जिले के कुछ खरीद केंद्रों पर लागू किया जाएगा. इन केंद्रों से जुड़े किसानों को अपने कृषि विस्तार अधिकारी के पास रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से ऐप पर रजिस्ट्रेशन करना होगा. रजिस्ट्रेशन के लिए किसानों को नाम, आधार नंबर, बैंक खाता विवरण, पट्टेदार पासबुक नंबर और खेती के क्षेत्र की जानकारी देनी होगी. रजिस्ट्रेशन के बाद किसान कपास बेचने के लिए स्लॉट बुक कर सकेंगे. CCI हर किसान को तय तारीख और समय देगा, जिससे केंद्रों पर भीड़ कम होगी और किसानों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
4.93 लाख एकड़ में कपास की खेती
पिछले साल कुछ मार्केटिंग और CCI अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगे थे कि उन्होंने बिचौलियों से मिलकर किसानों का शोषण किया. अब इस बार ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए CCI ने सख्ती से तैयारियां की हैं. पुराने मेडक जिले में इस साल 4.93 लाख एकड़ में कपास की खेती हुई है. इसमें से संगारेड्डी में सबसे ज्यादा 3.50 लाख एकड़, सिद्दीपेट में 1.08 लाख एकड़ और मेडक में करीब 35,000 एकड़ में कपास उगाया गया है. कपास की आवक को संभालने के लिए CCI इस सीजन में जिले भर में 49 खरीद केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है.
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कपास किसानों ने मंडी में किया हंगामा
वहीं, हरियाणा के सिरसा में सोमवार को कपास किसानों ने मंडी में हंगामा किया और सरकार व जिनिंग मिल मालिकों के खिलाफ नारेबाजी की. किसानों का आरोप था कि उनकी फसल के पूरा दाम नहीं दिया जा रहा है. नवरात्रि के पहले दिन जब 150 से ज्यादा ट्रैक्टर-ट्रॉली कपास लेकर नई मंडी पहुंचीं, तब ये विवाद शुरू हुआ. किसानों ने बोली प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया, क्योंकि मंडी में मिल मालिक 6,000 से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर दिखा रहे थे, लेकिन फैक्ट्री में तौल और प्रोसेसिंग के दौरान 500 से 1,000 रुपये तक की कटौती कर रहे थे. किसानों की मांग थी कि भुगतान पूरी तरह मंडी रेट पर ही हो, फैक्ट्री में किसी तरह की कटौती स्वीकार नहीं की जाएगी.