दिल्ली की मिट्टी में आया सुधार, वैज्ञानिकों की कोशिशों ने दिलाई सफलता

IISWC के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इस मॉडल को बड़े लेवल पर लगू किया जाए, तो दिल्ली-NCR की जमीन और पानी दोनों की सेहत में सुधार आ सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसी तभी संभव हो सकेगा जब स्थानीय लोग भी इसमें सक्रिय भागीदारी दें.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 7 Sep, 2025 | 10:30 PM

पर्यावरण के बदलाव के चलते दिल्ली- एनसीआर में न केवल हवा अशुद्ध है बल्कि इसका असर यहां की मिट्टी और पानी में भी देखने को मिलता है. इसी कड़ी में वैज्ञानिक लगातार यहां कि मिट्टी और पानी के सुधार के लिए नए शोध कर रहे हैं. बता दें कि, दिल्ली -एनसीआर की मिट्टी को सुधारने के लिए वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए थे उनका सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध और उनकी कोशिशों से मिट्टी का कटाव तो कम हुआ ही है, साथ ही भूजल स्तर में बढ़ोतरी हुई है. इसके साथ ही प्रदूषण में भी कमी दर्ज की गई है.

रेनवॉटर हार्वेस्टिंग से आया सुधार

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण अरावली हिल्स से लेकर यमुना के किनारों तक मिट्टी की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ा था. खासकर दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद में मिट्टी की सेहत बिगड़ती जा रही थी. इसे सुधारने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल एंड वॉटर कंजर्वेशन (IISWC) ने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, चेक डैम, बायो-इंजीनियरिंग मॉडल, और फाइटो-रिमेडिएशन तकनीक जैसे उपायों का इस्तेमाल किया, जिसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. वैज्ञानिकों की इन कोशिशों से यमुना की बाढ़भूमि में मिट्टी की नमी बनी रही और भूजल स्तर में 0.6 से 0.9 मीटर तक सुधार देखा गया है.

प्रदूषण में आई 30 फीसदी कमी

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैज्ञानिकों की कोशिशों के साथ-साथ पौधारोपण और स्थानीय घासों के इस्तेमाल से मिट्टी में लेड और जिंक जैसे प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों की मात्रा 25 से 30 फीसदी तक कम हो गई है. वहीं, अरावली हिल्स में कंटूर ट्रेंचिंग, ग्रास टर्फिंग और गली प्लगिंग जैसी तकनीकों के इस्तेमाल से मिट्टी के कटाव में 40 से 45 फीसदी तक कमी आई है और बरसात के पानी के संरक्षण में भी सुधार आया है. खास बात ये है कि ये सुधार केवल दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि द्वारका, नोएडा एक्सप्रेसवे और अन्य शहरी इलाकों में भी मिट्टी में औसतन 15 फीसदी का सुधार आया है.

लोगों की भागीदारी है जरूरी

IISWC के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इस मॉडल को बड़े लेवल पर लगू किया जाए, तो दिल्ली-NCR की जमीन और पानी दोनों की सेहत में सुधार आ सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसी तभी संभव हो सकेगा जब स्थानीय लोग भी इसमें सक्रिय भागीदारी करें. इसके साथ ही, विशेषज्ञ ये भी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर समय रहते मिट्टी की सुरक्षा के लिए अहम कदम न उठाए गए तो साल 2035 तक दिल्ली-एनसीआर के एक बड़े हिस्से की मिट्टी खराब हो सकती है.

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Published: 7 Sep, 2025 | 10:30 PM

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