Diwali 2025: Diwali 2025: दिवाली का त्योहार मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने या दिये जलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के कई हिस्सों में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और उसके अगले दिन चित्रगुप्त पूजा होती है, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है. ये पूजा खासतौर पर कायस्थ समाज के लोगों में बेहद ही महत्वपूर्ण मानी जाती है. बता दें कि चित्रगुप्त महाराज को कर्मों का गुप्त लेखाकार कहा जाता है. यानी पृथ्वी पर इंसान द्वारा गए कर्मों का सारा रिकॉर्ड चित्रगुप्त महाराज के पास ही होता है.
दिवाली में पूजा का महत्व
दिवाली के बाद का समय नए साल, नई शुरुआत और नए कारोबार से जुड़ा होता है. व्यापारियों के लिए ये दिन बेहद ही खास होता है, क्योंकि इस दिन व्यापारी नया बही-खाता खोलते हैं, जिसे चोपड़ा पूजन भी कहा जाता है. क्योंकि, चित्रगुप्त महाराज को हिसाब-किताब और लेखन का देवता माना जाता है. इसलिए नई बही खोलने से पहले उनका आशीर्वाद लिया जाता है, ताकि आने वाला शुभ और खुशियों भरा हो.
धार्मिक कथाओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार यमराज पृथ्वी पर आये और उन्होंने घोषणा की कि आज जो भी व्यक्ति अपने पूर्वजों और चित्रगुप्त की पूजा करेगा, उसे मृत्यु और यमलोक का भय नहीं रहेगा. कहते हैं तभी से दीपावली के बाद चित्रगुप्त महाराज की पूजा का महत्व बढ़ गया.
इस विधि से होती है पूजा
चित्रगुप्त महाराज की पूजा से पहले पूजा स्थन पर उनकी तस्वीर या मूर्ति रखी जाती है और मूर्ति के सामने कलम, दवात / पेन, नोटबुक या बही-खाता रखा जाता है. बता दें कि ये चीजें चित्रगुप्त महाराज का प्रमुख प्रतीक है, इसलिए इन पर रोली, चावल से तिलक किया जाता है. इसके बाद बही खाते में शुभ संदेश लिखा जाता है. मूर्ति के सामने पुष्प, नैवेद्य और दूध-मिठाई चढ़ाने के बाद ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः का जप या फिर आरती की जाती है.
भक्त लेते हैं ईमानदारी का संकल्प
चित्रगुप्त महाराज की पूजा न केवल एक धर्मिक अनुष्ठान है, बल्कि हमें हमारे कर्मों का आंकलन करने का एक मौका भी है. चित्रगुप्त महाराज हमें याद दिलाते हैं कि भाग्य तो मिल सकता है, लेकिन कर्मों का हिसाब हमेशा साफ होना चाहिए. बता दें कि इस पूजा के बाद आर्थिक समृद्धि के साथ मानसिक शुद्धता भी मिलती है.