Parwal Cultivation: परवल यानी Pointed Gourd एक ऐसी सब्जी है जो भारत के ज्यादातर हिस्सों में बेहद पसंद की जाती है. गर्मी और बरसात के मौसम में इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. इसका स्वाद हल्का और पौष्टिकता भरपूर होती है, इसलिए यह रसोई से लेकर बाजार तक हर जगह लोकप्रिय है. खास बात यह है कि एक बार परवल की बेल लग जाने के बाद यह कई सालों तक फल देती रहती है. अगर किसान सही तरीके से इसकी खेती करें, तो यह सब्जी सालभर स्थायी आमदनी का जरिया बन सकती है.
परवल की खेती क्यों है खास
परवल की खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है. इसका बाजार मूल्य हमेशा स्थिर रहता है और साल के हर मौसम में इसकी मांग बनी रहती है. इसके फलों का उपयोग सब्जी, अचार और सूखी सब्जी बनाने में होता है. चूंकि यह बहुवर्षीय पौधा है, इसलिए हर साल दोबारा बीज या पौधा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. एक बार बेल तैयार हो जाने पर किसान को कई सीजन तक लगातार फल मिलते रहते हैं.
परवल के लिए सही मौसम और मिट्टी
परवल की फसल गर्म और नमी वाली जलवायु में सबसे अच्छी तरह पनपती है.
तापमान: 25°C से 35°C तक सबसे अनुकूल रहता है.
मिट्टी: उपजाऊ, हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है.
pH स्तर: 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
मिट्टी में जैविक खाद या गोबर की खाद डालने से बेलों की वृद्धि तेज होती है और फल भी अधिक लगते हैं. जलनिकासी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है क्योंकि परवल की जड़ें ज्यादा पानी सहन नहीं कर पातीं.
परवल की रोपाई और पौध तैयार करने की विधि
परवल की खेती बीज से नहीं बल्कि बेल की कटिंग या कंद से की जाती है. किसान स्वस्थ और फलदार पौधों की बेलों से करीब 15–20 सेंटीमीटर लंबी कटिंग लेकर उन्हें खेत में लगाते हैं.
रोपाई के समय पौधों के बीच लगभग 1.5 से 2 मीटर की दूरी रखनी चाहिए ताकि बेलें आसानी से फैल सकें. बेलों को ऊपर चढ़ाने के लिए बांस या तार का सहारा देना जरूरी है. इससे फल जमीन से नहीं सड़ते और उत्पादन भी बढ़ता है.
सिंचाई और देखभाल
- गर्मी के मौसम में हर 7 से 10 दिन में सिंचाई करनी चाहिए.
- बरसात के मौसम में खेत में पानी जमा न हो, इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है.
- खरपतवार (घास) समय-समय पर निकालते रहें ताकि पौधों को पर्याप्त पोषण मिले.
- हर दो महीने में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालना फसल के लिए फायदेमंद रहता है.
परवल की फसल में कीट और रोग नियंत्रण
परवल की फसल में अक्सर कुछ सामान्य कीट और रोग देखने को मिलते हैं. फल मक्खी फल में छेद कर उसे सड़ा देती है, जिससे उपज खराब हो जाती है. लाल मकड़ी पत्तियों को नुकसान पहुंचाकर पौधे को कमजोर बना देती है. वहीं, एफिड्स और थ्रिप्स पौधों का रस चूसकर उनकी बढ़वार रोक देते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर असर पड़ता है.
रोकथाम के उपाय
- खेत की नियमित सफाई करें और फसल चक्र अपनाएं.
- नीम तेल का स्प्रे (5 मिली प्रति लीटर पानी) सप्ताह में एक बार करें.
- अगर संक्रमण ज्यादा हो तो जैविक कीटनाशक का सीमित उपयोग करें.
- पीले चिपचिपे ट्रैप लगाना भी कीट नियंत्रण में मददगार है.
फसल की तुड़ाई और उत्पादन
परवल की पहली तुड़ाई आमतौर पर रोपाई के 120 से 150 दिन बाद शुरू होती है. जब फल मध्यम आकार के और कोमल हों, तभी उन्हें तोड़ना चाहिए क्योंकि अधिक पुराने फलों का स्वाद कम हो जाता है. एक एकड़ जमीन से किसान लगभग 8 से 10 टन तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. नियमित सिंचाई और जैविक खाद का प्रयोग करने से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ती है.
कम लागत में ज्यादा मुनाफा
परवल की खेती में शुरुआती लागत थोड़ी अधिक हो सकती है, लेकिन एक बार पौधे लग जाने के बाद सालों तक फसल मिलती है. इसलिए इसे लॉन्ग-टर्म प्रॉफिट वाली फसल कहा जाता है. अगर किसान स्थानीय बाजारों, मंडियों या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर सीधी बिक्री करें, तो उन्हें और ज्यादा लाभ मिल सकता है.