गौ-संरक्षण के लिए सालाना बजट बढ़ाकर 505 करोड़ किया, गाय पालक किसानों की आय बढ़ेगी

मध्यप्रदेश में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है. गौवंश संरक्षण, स्वावलंबी गौशालाएं और डेयरी नेटवर्क के विस्तार से किसानों की आय बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है. आने वाले वर्षों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इससे नई मजबूती मिलने की उम्मीद है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 28 Dec, 2025 | 03:25 PM
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Madhya Pradesh News : खेती के साथ पशुपालन अब सिर्फ सहायक काम नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण इलाकों में कमाई का मजबूत आधार बनता जा रहा है. इसी सोच के साथ मध्यप्रदेश में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन को नई दिशा देने की तैयारी की जा रही है. सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में दूध उत्पादन बढ़ाकर प्रदेश की हिस्सेदारी को दोगुने से भी ज्यादा किया जाए. इसके साथ ही गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाकर किसानों और पशुपालकों की आय बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.

गौवंश संरक्षण के लिए सालाना बजट भी बढ़ाकर 505 करोड़ रुपये किया गया

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में गोवंश संरक्षण  को लेकर बड़े स्तर पर काम किया जा रहा है. आंकड़ों के मुताबिक, मध्यप्रदेश में करीब 1.87 करोड़ गौवंश मौजूद है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत अवर्णित नस्ल का है. निराश्रित पशुओं की देखभाल के लिए प्रदेशभर में 2500 से अधिक गौशालाएं संचालित की जा रही हैं, जहां करीब 4.75 लाख गौवंश को आश्रय मिला हुआ है. गौशालाओं की आर्थिक स्थिति  मजबूत करने के लिए प्रति गौवंश अनुदान को 20 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है. इसके लिए सालाना बजट भी बढ़ाकर लगभग 505 करोड़ रुपये किया गया है, ताकि गौशालाएं स्वावलंबी बन सकें.

20 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन का बड़ा लक्ष्य

मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी देश के कुल दुग्ध उत्पादन  में फिलहाल करीब 9 प्रतिशत है. इसे बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए नई योजनाओं के तहत 25 से 200 दुधारू पशुओं की डेयरी इकाइयों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. इसके साथ ही भैंस पालन को बढ़ावा देने के लिए डेयरी आधारित कार्यक्रम  पूरे प्रदेश में लागू किए गए हैं. सहकारी व्यवस्था को मजबूत कर दूध संकलन और प्रसंस्करण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को दूध का बेहतर दाम मिल सके.

गांव-गांव जुड़ेगा दुग्ध सहकारी नेटवर्क

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दूध की खरीद और बिक्री को आसान बनाने के लिए सहकारी नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया जा रहा है. आने वाले तीन वर्षों में 15 हजार से अधिक गांवों को दुग्ध सहकारी समितियों से जोड़ने की योजना है. इसके साथ ही प्रदेश में औसत दुग्ध संकलन को बढ़ाकर 33 लाख लीटर प्रतिदिन से ज्यादा करने का लक्ष्य रखा गया है. इससे न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे.

नस्ल सुधार और स्वास्थ्य सेवाओं पर फोकस

पशुओं की उत्पादकता  बढ़ाने के लिए नस्ल सुधार अभियान चलाया जा रहा है. इसमें सेक्स-सॉर्टेड सीमन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे बछिया जन्म की संभावना बढ़े और दूध उत्पादन मजबूत हो. इसके अलावा उन्नत पशुपालन, संतुलित पशु आहार और समय पर इलाज के लिए विशेष संपर्क अभियानों पर काम हो रहा है. गांवों को मॉडल बनाकर पशुपालकों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ा जा रहा है.
आने वाले समय में स्वावलंबी गौशालाओं, ब्रीडर समूहों और बेहतर सेवाओं के जरिए मध्यप्रदेश को देश के अग्रणी दुग्ध उत्पादक राज्यों में शामिल करने की तैयारी है.

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