REPORT: जम्मू-कश्मीर में सेब के बाद दालों पर भी बारिश का कहर, 94 फीसदी फसल तबाह

केवल दालें ही नहीं, तिलहन की फसल पर भी बाढ़ ने कहर बरपाया है. इस सीजन में 98,916 हेक्टेयर में तिलहन की खेती की गई थी, जिसमें से लगभग 90,000 हेक्टेयर खेतों की फसल बर्बाद हो गई. इससे साफ है कि सरसों का तेल भी प्रदेश में बाहर से खरीदना पड़ेगा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 17 Sep, 2025 | 02:01 PM

Flood Damage 2025: जम्मू-कश्मीर में इस बार की लगातार बारिश और बाढ़ ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है. प्रदेश में दालों की 94 फीसदी और तिलहन की 90 फीसदी से ज्यादा खेती पूरी तरह तबाह हो चुकी है. भारी बारिश से खेतों में खड़ी फसलें बह गईं या सड़ गईं, जिससे न केवल किसानों को बड़ा आर्थिक झटका लगा है, बल्कि आम लोगों की रसोई पर भी इसका सीधा असर पड़ने वाला है. अब प्रदेश को अपनी जरूरत की दालें और सरसों का तेल बाहरी राज्यों से मंगवाना पड़ेगा.

किसानों की मेहनत पर भारी बारिश

कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में इस साल लगभग 32,070 हेक्टेयर जमीन पर दालों की खेती की गई थी. लेकिन लगातार बारिश और बाढ़ के कारण लगभग 30,000 हेक्टेयर खेत पूरी तरह बर्बाद हो गए. आमतौर पर प्रदेश में करीब 26,755 मीट्रिक टन दालों की पैदावार होती है, जिसमें 5 प्रतिशत उत्पादन जम्मू संभाग और करीब 10 प्रतिशत कश्मीर से आता है. इस बार उत्पादन घटकर मात्र 1,605 टन तक सिमटने का अनुमान है. इसका मतलब है कि किसान मुश्किल से अपनी जरूरत भर की दाल ही निकाल पाएंगे.

तिलहन की फसल का भी नुकसान

केवल दालें ही नहीं, तिलहन की फसल पर भी बाढ़ ने कहर बरपाया है. इस सीजन में 98,916 हेक्टेयर में तिलहन की खेती की गई थी, जिसमें से लगभग 90,000 हेक्टेयर खेतों की फसल बर्बाद हो गई. इससे साफ है कि सरसों का तेल भी प्रदेश में बाहर से खरीदना पड़ेगा.

प्रभावित जिले और नुकसान का आंकड़ा

सबसे ज्यादा नुकसान जम्मू, सांबा, कठुआ और उधमपुर जिलों में हुआ है. किसानों का कहना है कि उन्होंने पूरी उम्मीद के साथ खेती की थी, लेकिन इस बार मौसम की मार इतनी तेज थी कि उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई. कई किसानों के लिए यह आर्थिक संकट से जूझने का समय बन गया है.

बाहर से पूरी होगी मांग

ट्रेडर्स फेडरेशन ऑफ वेयरहाउस के अध्यक्ष दीपक गुप्ता ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हर दिन करीब 40 टन दालों की खपत होती है. स्थानीय उत्पादन लगभग खत्म होने के कारण अब पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से दालें मंगवानी पड़ेंगी. कनक मंडी के दाल व्यापारियों का कहना है कि पड़ोसी राज्यों से बड़े पैमाने पर दालें आयात करनी होंगी, जिससे दाम भी बढ़ सकते हैं.

मुआवजे की मांग

फसल बर्बादी के चलते किसान सरकार से उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि भारी नुकसान के बाद खेती जारी रखना मुश्किल हो सकता है. कृषि विभाग ने अपनी रिपोर्ट राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ) को सौंप दी है, जिससे प्रभावित किसानों को राहत पैकेज दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो सके.

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