Maharashtra Farmers: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र के किसान इस समय भारी संकट का सामना कर रहे हैं. लगातार बाढ़ और कर्ज के दबाव ने उनकी फसल, पशुधन और जीवन को तहस-नहस कर दिया है. जनवरी से मार्च 2025 के बीच राज्य में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इस स्थिति ने किसान परिवारों और बच्चों की जिंदगी को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है.
बाढ़ ने तबाह की खरीफ फसलें
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इस वर्ष की भारी बारिश ने महाराष्ट्र की खरीफ फसलों को बर्बाद कर दिया. सोयाबीन और कपास जैसी प्रमुख फसलें सड़ गईं, नदियों और नालों के उफान ने खेत, पशुधन और घर को तहस-नहस कर दिया. मराठवाड़ा में 2,500 से अधिक मवेशी बह गए और कई जगह उपजाऊ मिट्टी भी बह गई, जिससे खेती करना अब और मुश्किल हो गया.
136 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई थी, लेकिन भारी बारिश ने महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया. राज्य के 15 जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई, और मराठवाड़ा के पांच जिलों में औसत से 20 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई.
किसान आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या
राज्य राहत और पुनर्वास विभाग के अनुसार, इस तीन महीने के दौरान 767 किसानों ने आत्महत्या की. मुख्यमंत्री ने 2,215 करोड़ रुपये की सहायता का दावा किया है, लेकिन किसान इसे पर्याप्त नहीं मानते. इस आर्थिक और भावनात्मक संकट ने कई परिवारों को टूटने पर मजबूर कर दिया है.
किसानों की आवाज
यवतमाल जिले की किसान वनीता शेंडे कहती हैं, “सूखे ने पहले ही हमारी जिंदगी तबाह कर दी थी, अब बाढ़ ने और संकट बढ़ा दिया है.” सोलापुर की 11 साल की श्वेता बताती हैं, “जब भी वाहन की हॉर्न सुनती हूं, लगता है पापा लौट आए हैं, लेकिन वे कभी वापस नहीं आएंगे. मेरी ख्वाहिश है कि कोई बच्चा ऐसा पिता न खोए, जैसा मैंने और मेरे भाई ने खोया.”
धराशिव जिले की अश्विनी भोरे कहती हैं कि महिलाएं और परिवार इस प्राकृतिक आपदा के बाद और भी संघर्ष में फंस गए हैं. किसान केवल फसल ही नहीं खो रहे, बल्कि उनकी आजीविका, डेयरी और गृहस्थी भी बर्बाद हो गई है.
सरकारी राहत और असंतोष
राज्य के नेता बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे हैं, लेकिन जमीन पर वास्तविक राहत अभी तक नहीं पहुंची. मुख्यमंत्री ने कहा कि 31.64 लाख किसानों को 2,215 करोड़ रुपये की सहायता मिली है. हालांकि, किसानों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है. चुनावी साल में पूर्ववर्ती योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर मदद का वादा किया गया था, लेकिन अब सरकार ऋण माफी या पर्याप्त सहायता देने में हिचकिचा रही है.
पलायन को मजबूर किसान
कई किसान अब खेती छोड़कर पुणे और मुंबई जैसे शहरों में रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर हैं. कुछ पुराने लोग और परिवार अपनी टूटी-फूटी जमीन और घर छोड़ने पर मजबूर होंगे. इस संकट ने न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और भावनात्मक तौर पर भी किसानों को हिला कर रख दिया है.
महाराष्ट्र के किसान बाढ़, कर्ज और आत्महत्याओं के संकट से जूझ रहे हैं. उनकी फसल, पशुधन और जीवन प्रभावित हुआ है. सरकार की राहत पर्याप्त नहीं होने के कारण किसान पलायन और गरीबी की तरफ बढ़ रहे हैं. यह समय तत्काल और प्रभावी राहत की मांग करता है.