नई दिल्ली से आई नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दालों की खेती का दायरा और उत्पादन दोनों बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं. रिपोर्ट का नाम है “Strategies and Pathways for Accelerating Growth in Pulses towards the Goal of Atmanirbharta” और इसे नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार नीलम पटेल और छह युवा विशेषज्ञों ने मिलकर तैयार किया है.
क्लस्टर आधारित खेती की रणनीति
businessline की खबर के अनुसार,रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि दाल उत्पादन को आगे बढ़ाने के लिए फसल-वार और क्षेत्र-वार क्लस्टर मॉडल अपनाना जरूरी है. यानी जिन इलाकों में अरहर, उड़द या मूंग जैसी दालें ज्यादा होती हैं, वहां अलग रणनीति बनाई जाए और जिन जगहों पर अभी खेती कम होती है, वहां नई तकनीक और प्रोत्साहन के जरिए खेती को बढ़ावा दिया जाए.
धान की खाली जमीन का उपयोग
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अगर देश के 10 बड़े राज्यों में धान की खाली पड़ी जमीन (rice fallow area) का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा भी दालों की खेती में इस्तेमाल किया जाए, तो करीब 28.5 लाख टन अतिरिक्त दाल का उत्पादन हो सकता है. यह आंकड़ा दिखाता है कि हमारे पास दालों की आत्मनिर्भरता की दिशा में कितना बड़ा अवसर है.
किसानों को प्रोत्साहन और भरोसा
नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि किसानों को दाल की खेती के लिए प्रोत्साहन पैकेज, इनपुट लागत में मदद और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर भरोसा दिलाने की योजना दी जाए. इससे किसान चावल या मक्का जैसी नकदी फसलों से हटकर दालों की ओर रुख कर सकेंगे.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार को मिड-डे मील और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसी योजनाओं में दालों को अनिवार्य रूप से शामिल करना चाहिए. इससे गरीब परिवारों और बच्चों को पोषण मिलेगा और दालों की खपत सुनिश्चित होगी. पोषण की कमी से जूझ रही महिलाओं और बच्चों के लिए यह कदम बेहद अहम साबित हो सकता है.
हालांकि, कृषि मंत्रालय के कुछ पूर्व अधिकारियों ने इस पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि जब तक सरकार कुल फसलों के लिए संतुलित नीति नहीं बनाती, तब तक केवल दालों पर बनाई गई अलग नीति का ज्यादा असर नहीं होगा. उदाहरण के तौर पर इस साल किसानों ने मक्का की खेती का रकबा 12 फीसदी बढ़ा दिया जबकि अरहर की खेती घटाकर 2 फीसदी कर दी. इसका कारण यह है कि किसानों को मक्का की बिक्री पर ज्यादा भरोसा है.
दाल उत्पादन में सरकार की भूमिका
रिपोर्ट में यह भी याद दिलाया गया है कि 2004 के बाद से भारत में दाल उत्पादन की रफ्तार तेज हुई है. खासतौर पर 2007 में शुरू हुई राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)-पल्सेस ने खेती का क्षेत्र बढ़ाने, उत्पादकता सुधारने और नई तकनीक लाने में अहम भूमिका निभाई.
साफ है कि दाल उत्पादन को बढ़ाना केवल खेती का मुद्दा नहीं है, बल्कि पोषण, खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय से भी जुड़ा हुआ है. अगर सरकार सही प्रोत्साहन और भरोसेमंद नीतियां अपनाती है, तो आने वाले समय में भारत दालों के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकता है.