Diwali 2025: हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार यानी दीपावली आने वासी है. दीवाली प्रकाश का त्योहार है और यही कारण है कि दीवाली आने से पहले ही घर-घर में लोग सजावट शुरू कर देते हैं. आज के समय में लोग अपने घरों को बाजार में मिलने वाली तमाम तरह की आधुनिक LED लाइट्स और सजावटी लाइटों से सजाते हैं लेकिन इन सब के बीच कुम्हारों द्वारा बनाए गए पारंपरिक मिट्टी के दिये आज भी हर घर में जलाए जाते हैं.
अमावस्या की रात के घोर अंधकार को मिटाने के लिए आज भी पारंपरिक मिट्टी के दियों को जलाया जाता है. सरकार भी मिट्टी के दियों को खरीदने के लिए हर साल लोगों को बढ़ावा देती है ताकि मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों की भी दीवाली अच्छी मन सके. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये मिट्टी के दिये बनाने के लिए कुम्हार किस मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं और कैसे इन दियों को तैयार किया जाता है.
किस मिट्टी से बनते हैं दीवाली के दिये
आमतौर पर कुम्हार मिट्टी के दिये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी (Clay Soil) का इस्तेमाल करते हैं, जिसे कई जगहों पर काली मिट्टी, गेरुई मिट्टी या कड़क मिट्टी भी कहा जाता है. ये मिट्टी लचीली और नर्म होती है, जिसकी वजह से इसे चाक पर आसानी से आकार दिया जा सकता है. बता दें कि मिट्टी को मजबूत और लचीला बनाने के लिए कुम्हार कई बार मिट्टी में रेत या भूसी भी मिलाते हैं, ताकि दिये बनने के बाद टूटे नहीं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कई बार कुम्हार नदी या तालाब की तलछट वाली मिट्टी का भी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि बहुत महीन और साफ होती है, जिससे दिये मुलायम और सुंदर बनते हैं.
ऐसे बनाए जाते हैं दिये
दिये बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी को पानी में गलाकर छाना जाता है ताकि उसमें से कंकड़-पत्थर निकल जाएं. फिर इसे अच्छी तरह गूंथा जाता है. इसके बाद कुम्हार चाक को घुमाकर मिट्टी का छोटा गोला रखते हैं और दोनों हाथों से उसे दिये का आकार देते हैं. एक बार दिये तैयार हो जाते हैं तो उन्हें 1 से 2 दिन के लिए सुखाया जाता है ताकि उनमें से नमी निकल जाए. नमी निकलने के बाद दियों को भट्ठी (Furnace)में रखकर 400 से 800 डिग्री तापमान तक पकाया जाता है. ऐसा करने से सख्त और टिकाऊ बनते हैं. कुछ कुम्हार दियों को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए चूना, लाल गेरू या एक्रेलिक रंगों से सजाते हैं ताकि बाजार में इनकी कीमत अच्छी मिले.
मिट्टी के दिये जलाने के फायदे
मिट्टी के दियों को इस्तेमाल करने को बढ़ावा देने का कारण है पर्यावरण को सुरक्षित रखना और स्थानीय और गांव के कारीगरों को रोजगार देना ताकि उनकी आमदनी भी बढ़ सके. दूसरी और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मिट्टी के दिये पूजा-पाठ के लिए शुद्ध माने जाते हैं.