Stubble Burning: हर साल की तरह इस साल भी धान की कटाई के साथ ही पराली जलाने का मौसम शुरू हो गया है. किसानों द्वारा खेतों में बचे हुए धान के अवशेष जलाने की यह परंपरा, जिसे स्टबल बर्निंग या पराली जलाना कहा जाता है, पंजाब और अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर देखी जाती है. इस साल स्टबल बर्निंग सीजन के पहले सप्ताह (15 सितंबर से 21 सितंबर तक) में कुल 64 घटनाएं दर्ज की गईं, जो पिछले साल की 75 घटनाओं से लगभग 15 प्रतिशत कम हैं.
राज्यों में पराली जलाने की स्थिति
कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS), जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) संचालित करता है, की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में 56 घटनाएं हुईं, जबकि पिछले साल यह संख्या 52 थी. हरियाणा में इस साल तीन घटनाएं हुईं, जो पहले साल की 16 घटनाओं की तुलना में काफी कम हैं. उत्तर प्रदेश में चार मामले दर्ज हुए, राजस्थान में एक और दिल्ली व मध्य प्रदेश में कोई घटना नहीं हुई.
पूरे 2024 के सीजन में, देशभर में पराली जलाने की घटनाओं में 34 प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई थी. पंजाब में कुल 10,909 मामले सामने आए थे, हरियाणा में 1,406, उत्तर प्रदेश में 6,142, दिल्ली में 13, राजस्थान में 2,772 और मध्य प्रदेश में 16,360 मामले दर्ज किए गए थे. यह आंकड़े उपग्रह निगरानी के जरिए जुटाए गए, जिनमें धान के अवशेषों के जलने की गतिविधियों को “स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल” के अनुसार ट्रैक किया गया.
किसानों के पास विकल्प और समय
विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को अब पराली जलाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गेहूं की बुवाई सामान्यतः नवंबर के पहले सप्ताह में शुरू होती है. किसानों के पास खेत तैयार करने का पर्याप्त समय है. सरकार ने भी आश्वासन दिया है कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जमीन को गेहूं की बुवाई के लिए तैयार किया जाएगा.
सरकार की पहल और जागरूकता
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बताया कि राज्य सरकार किसानों के लिए जागरूकता शिविर आयोजित कर रही है और क्रॉप रेजिड्यू मैनेजमेंट (CRM) मशीनरी उपलब्ध करा रही है, ताकि पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाई जा सके. उन्होंने कहा कि किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए, और सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करना चाहिए.
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का यह भी कहना है कि पराली जलाना न केवल कृषि और मिट्टी के लिए नुकसानदेह है, बल्कि दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बनता है. इस वजह से सरकार की कोशिशें, जैसे कि मशीनरी उपलब्ध कराना और जागरूकता फैलाना, बेहद जरूरी हैं.