Mustard Farming: सरसों रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक है. खासतौर पर उत्तर भारत, मध्य भारत और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. सरसों के तेल की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है. यही कारण है कि इसकी खेती करने वाले किसानों को अपनी उपज की अच्छी कीमत मिलती है. ऐसे में अगर आप किसान हैं और रबी सीजन में सरसों की खेती करने की सोच रहे हैं तो 20 अक्टूबर तक का समय परफेक्ट है. हरियाणा के हिसार जिले के कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों के लिए सरसों की खेती से जुड़ी सारी जानकारी दी है, जिसकी मदद से किसान अच्छी मात्रा में उत्पादन कर सकेंगे.
उन्नत किस्मों का चुनाव करें
सरसों की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए जरूरी है कि किसान उसकी उन्नत किस्मों का चुनाव करें. अगर किसान सिंचित इलाकों में सरसों की खेती कर रहे हैं तो RH-725, RH-1706, RH-1975, RH-749, RH-8812, RH-30 जैसी उन्नत किस्में बेस्ट हैं. वहीं, अगर किसान असिंचित यानी कम पानी या रेतीली जमीन पर सरसों की खेती करने जा रहे हैं तो बेहतर होगा कि वे सरसों की RH-725, RH-1424, RH-761, RH-406 जैसी उन्नत किस्मों का चुनाव करें. बता दें कि, सरसों के बीजों की बुवाई (Seed Sowing) का सही समय 30 सितंबर से 20 अक्टूबर तक का होता है. इन दिनों तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, जो कि सरसों की खेती के लिए सही माना जाता है.
बुवाई से पहले करें बीज उपचार
सिंचित इलाके यानी पानी वाले इलाकों में सरसों की खेती के लिए प्रति एकड़ सवा किलोग्राम बीज, तो वहीं कम पानी वाले इलाकों में प्रति एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए किसानों को 2 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बता दें कि, सरसों की फसल में तना गलन रोग (Stem Rot) का हमला बहुत तेजी से होता है. इसलिए जरूरी है कि बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज का 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचार कर लें.

सरसों की बुवाई से पहले बीज उपचार जरूर करें (Photo Credit-Canva)
खाद-उर्वरक का रखें खास खयाल
सरसों की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए बेहद जरूरी है कि खाद और उर्वरकों का खास खयाल रखा जाए. सिंचित इलाकों में बीज बुवाई के समय मिट्टी में प्रति एकड़ की दर से 35 किलोग्राम यूरिया, 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 14 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें या फिर 30 किलोग्राम यूरिया और 25 किलोग्राम डीएपी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. जबकि असिंचित यानी कम पानी वाले इलाकों में प्रति एकड़ की दर से 35 किलोग्राम यूरिया और 50 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें. इसके अलावा अगर मिट्टी में जिंक की कमी है तो खेत की अंतिम जुताई से पहले मिट्टी में प्रति एकड़ की दर से 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट डालें.
इस तरह करें खरपतवार नियंत्रण
हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, सरसों की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल जब 25 दिन पुरानी हो जाए तो उसपर 25 मिलीलीटर ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत एस एल (राउंडअप) का छिड़काव करें. इसके बाद फसल के 50 दिन पूरे करने पर 50 मिलीलीटर इसी दवा का छिड़काव करें. बता दें कि दवा को प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी में घोलकर ही इस्तेमाल करें और ध्यान रहे कि छिड़काव के समय खेत में नमी होनी चाहिए.
कीट और रोग से ऐसे करें बचाव
सरसों की फसल में तना गलन रोग का हमला हर साल होता है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए बुवाई के 40 से 50 दिन बाद और 65 से 70 दिन बाद बाविस्टीन का 0.1 प्रतिशत की दर से दो बार छिड़काव करें. अगर फसल में सफेद रतुआ के लक्षण नजर आएं तो प्रति एकड़ की दर से 250 लीटर पानी में 600 ग्राम मेन्केजैब का घोल बनाकर फसल पर उसका छिड़काव करें. वहीं, सरसों की फसल पर चेपा जैसे कीट का प्रकोप होने लगता है. इस स्थिति में किसान 250-400 मिली लीटर डाईमेथोएट 30 ई. सी. को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से फसल पर छिड़कें.
फसल को सही समय पर दें पान
सरसों की फसल को पूरी फसल अवधि में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. पहली सिंचाई फूल निकलते समय और फसल में फलियां बनते समय. अगर पानी की मात्रा कम है तो फसल को केवल फूल आते समय ही पानी दें. सर्दियों में फसल को पाले से बचाने के लिए हल्की सी सिंचाई करें और धुआं करें. किसान चाहें को कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा जारी किए गए टोल फ्री नंबर 18001803001 पर भी संपर्क कर सकते हैं. संपर्क करने का समय सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को सुबह 10 से 12 बजे तक है.