गांव, सीमा या जंगल… जहां बिजली नहीं, वहां अब शुद्ध पानी मिलेगा. महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा (MS University, Baroda) के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा सोलर बेस्ड नैनो टेक्नोलॉजी वाटर फिल्टर तैयार किया है. गुजरात टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया है. यह डिवाइस खासतौर पर ग्रामीण इलाकों, सेना के कैंप और उन स्थानों के लिए है, जहां साफ पानी आज भी एक सपना है. यह नई तकनीक वायरस, बैक्टीरिया और केमिकल को हटाने में पूरी तरह सक्षम है.
सूरज से चलने वाला वाटर फिल्टर
इस इनोवेटिव डिवाइस की सबसे बड़ी खासियत है कि यह सोलर एनर्जी से काम करता है. यानी बिजली के बिना भी यह पानी को साफ कर सकता है. डिवाइस में बैटरी और पोर्टेबल सिस्टम है, जो अंधेरे में भी इसे चलाने की सुविधा देता है. इसका मतलब यह हुआ कि यह फिल्टर उन इलाकों में भी पूरी तरह काम करेगा जहां बिजली या इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है. यह डिवाइस छोटे साइज़ का है और इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है.
फौजियों के लिए भी वरदान
MS यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजीव कुमार बताते हैं कि यह डिवाइस फौजियों के लिए भी बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. उनका कहना है कि अक्सर जवान दो-तीन दिन के कैंपेन पर रहते हैं, जहां पीने लायक पानी नहीं होता. ऐसे में यह नैनो तकनीक आधारित फिल्टर उनके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. यह डिवाइस खासकर उन लोगों की जरूरत पूरी करता है, जिन्हें भरोसेमंद पानी के स्रोत की दरकार होती है.
ग्रामीण भारत के लिए समाधान
भारत के लाखों गांवों में आज भी स्वच्छ पानी की भारी किल्लत है. इस तकनीक से ग्रामीण भारत को न सिर्फ स्वच्छ पानी मिलेगा बल्कि जलजनित बीमारियों से भी राहत मिलेगी. डॉ. वैशाली सुथार बताती हैं कि जब लाइट नहीं होती, तब भी यह डिवाइस काम करता है. हमने इसे पूरी तरह पोर्टेबल और ऑटोमैटिक बनाया है ताकि गांवों में इसे चलाना आसान हो.
शोध, पेटेंट और भविष्य की उम्मीद
इस प्रोजेक्ट पर 10 शोधार्थियों की टीम ने काम किया है और इसका पेटेंट भी मिल चुका है. वैज्ञानिक मानते हैं कि यह तकनीक भविष्य में सस्ती और भरोसेमंद जल आपूर्ति का एक बड़ा विकल्प बन सकती है. फिलहाल इसका परीक्षण पूरा हो चुका है और आने वाले समय में इसे बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाने की योजना है.