न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनना चाहते थे डॉ. कुरियन, जिनकी वजह से हर घर तक पहुंच पाया दूध

डॉ. कुरियन का सपना न्यूक्लियर फिजिक्स और मेटालर्जी के क्षेत्र में वैज्ञानिक बनने का था. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौटे और सरकारी क्रीमरी में छह महीने की नौकरी मिली. यह नियुक्ति उनके लिए सिर्फ औपचारिकता थी, लेकिन यहीं से उनकी जिंदगी का असली मोड़ शुरू हुआ.

नई दिल्ली | Published: 9 Sep, 2025 | 03:17 PM

भारत की आजादी की लड़ाई में जहां नमक और नील जैसे प्रतीक चर्चित हुए, वहीं दूध ने भी एक नई क्रांति की नींव रखी. यह कहानी है अमूल की, जिसने न सिर्फ भारत को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि किसान और विज्ञान मिलकर असंभव को संभव कर सकते हैं. इसके सूत्रधार बने डॉ. वर्गीज कुरियन, जो अमेरिका में न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनना चाहते थे लेकिन किस्मत ने उन्हें भारत का “दूध वाला हीरो” बना दिया.

न्यूक्लियर फिजिक्स से डेयरी तक का सफर

डॉ. कुरियन का सपना न्यूक्लियर फिजिक्स और मेटालर्जी के क्षेत्र में वैज्ञानिक बनने का था. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौटे और सरकारी क्रीमरी में छह महीने की नौकरी मिली. यह नियुक्ति उनके लिए सिर्फ औपचारिकता थी, लेकिन यहीं से उनकी जिंदगी का असली मोड़ शुरू हुआ. किसानों की परेशानी, दूध में बिचौलियों का खेल और ब्रिटिश कंपनी पोलसन की मनमानी देखकर उनका दिल किसानों के लिए धड़कने लगा.

किसानों के विरोध से शुरू हुई अमूल की यात्रा

1946 में गुजरात के कैरा जिले के किसानों ने पोलसन डेयरी के खिलाफ आवाज उठाई. किसानों का कहना था कि उन्हें उनके दूध का उचित दाम नहीं मिलता. सरदार वल्लभ भाई पटेल और त्रिभुवन काका की अगुवाई में “कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड” (KDCMPUL) की स्थापना हुई. यही आगे चलकर अमूल बना. जब डॉ. कुरियन इस आंदोलन से जुड़े तो उन्होंने अपने ज्ञान और दृष्टि से इसे नई दिशा दी.

श्वेत क्रांति का सूत्रपात

डॉ. कुरियन ने डेयरी उत्पादन को वैज्ञानिक तकनीक और आधुनिक प्रबंधन से जोड़ दिया. उन्होंने किसानों को समझाया कि अगर वे संगठित होकर काम करें तो न सिर्फ ब्रिटिश कंपनियों की पकड़ ढीली होगी, बल्कि दूध से ही समृद्धि की नई राह खुलेगी. यही से भारत में “श्वेत क्रांति” की शुरुआत हुई. लाल बहादुर शास्त्री की राष्ट्रीय डेयरी नीति ने इस अभियान को और मजबूत किया और देखते ही देखते भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया.

दो गांव से लाखों किसानों तक

1950 में जब डॉ. कुरियन ने इस आंदोलन की बागडोर संभाली, तब अमूल से केवल दो गांव जुड़े थे और रोजाना 247 लीटर दूध ही इकट्ठा होता था. लेकिन उनके मार्गदर्शन में यह कारवां बढ़ता गया और आज अमूल 28 राज्यों के 222 जिलों में फैल चुका है. अमूल से करीब 1 करोड़ से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं और इसका टर्नओवर 80 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा है.

किसानों की ताकत का प्रतीक

आज भारत सालाना करीब 190 मिलियन टन से ज्यादा दूध का उत्पादन करता है और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 400 ग्राम से अधिक है. यह उपलब्धि सिर्फ इसलिए संभव हुई क्योंकि डॉ. कुरियन ने किसानों को विश्वास दिलाया कि वे किसी के मोहताज नहीं हैं. उन्होंने साबित कर दिया कि विज्ञान, प्रबंधन और संगठन अगर साथ आ जाएं तो गांव भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकते हैं.

विरासत जो हमेशा जिंदा रहेगी

डॉ. वर्गीज कुरियन का जीवन इस बात का सबूत है कि इंसान अपनी चाहत छोड़कर भी लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल सकता है. न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनने का सपना छोड़कर उन्होंने दूध से देश को शक्ति दी और आज हर गिलास दूध में उनकी मेहनत और दूरदृष्टि का स्वाद मिलता है.