क्या होता है नॉन-वेज दूध जिस पर अटक गई भारत-अमेरिका की ट्रेड डील, सच में गायों को खिलाया जाता है मांसाहार चारा

भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और दूध, दही, घी जैसे चीजों को पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में पवित्र माना जाता है. ऐसे में अगर कोई गाय मांस या खून जैसे मांसाहारी चारे से पाली गई हो, तो उसका दूध भारतीय परंपराओं और धार्मिक भावनाओं के बिल्कुल खिलाफ माना जाता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 25 Aug, 2025 | 02:12 PM

भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते (ट्रेड डील) पर बातचीत चल रही है, लेकिन अब ये बातचीत एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर आकर रुक गई है और वो है ‘नॉन-वेज मिल्क’. जी हां, आपने सही पढ़ा नॉन-वेज दूध. भारत सरकार ने अमेरिका से साफ कह दिया है कि वह ऐसा दूध या डेयरी उत्पाद भारत में नहीं आने देगा, जिसकी उत्पादन प्रक्रिया में पशु-आधारित आहार का इस्तेमाल हुआ हो. तो चलिए समझते हैं कि आखिर नॉन-वेज मिल्क होता क्या है, और क्यों भारत इसके खिलाफ खड़ा है.

क्या होता है ‘नॉन-वेज मिल्क’?

नॉन-वेज मिल्क उस दूध को कहा जाता है जो ऐसी गायों से मिलता है, जिनको खाने में मांस, खून, हड्डी या जानवरों से बने प्रोटीन वाले चारे दिए जाते हैं. अमेरिका जैसे देशों में ऐसा चारा देना आम बात है. माडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका की गायों को सुअर, मुर्गी, मछली, घोड़े और यहां तक कि कुत्ते-बिल्ली बॉडी पार्ट के बचे हुए हिस्सों से बना सस्ता और प्रोटीन वाला खाना दिया जाता है. जब गाय ऐसा मांसाहारी चारा खाती है, तो उसका असर उसके दूध पर भी पड़ता है. यही वजह है कि इस दूध को लेकर भारत में विवाद खड़ा हो गया है.

भारत क्यों कर रहा है विरोध?

भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और दूध, दही, घी जैसे चीजों को पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में पवित्र माना जाता है. ऐसे में अगर कोई गाय मांस या खून जैसे मांसाहारी चारे से पाली गई हो, तो उसका दूध भारतीय परंपराओं और धार्मिक भावनाओं के बिल्कुल खिलाफ माना जाता है.

किसानों की चिंता क्यों बढ़ी?

अगर भारत सरकार अमेरिका के दूध और घी को देश में बेचने की इजाजत देती है, तो सस्ते विदेशी दूध के आने से यहां का दूध बहुत सस्ता हो सकता है. इससे हमारे देश के लाखों डेयरी किसानों को बड़ा नुकसान होगा.

देश के किसानों का कहना है, “अगर अमेरिकी दूध को मंजूरी मिल गई, तो हमारी पूरी डेयरी व्यवस्था बर्बाद हो जाएगी. सरकार को हमें सस्ते विदेशी दूध से बचाना चाहिए.”

वहीं  SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में बिकने लगे, तो इससे देश को हर साल करीब 1.03 लाख करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है.

अमेरिका क्यों बना रहा है दबाव?

अमेरिका चाहता है कि उसे भारत के बड़े डेयरी बाजार में घुसने का मौका मिले. लेकिन जब भारत ने दूध को लेकर सख्त शर्तें रखीं, तो अमेरिका ने इसे “बेवजह की व्यापारिक रुकावट” कह दिया. उसका कहना है कि ऐसे प्रमाण पत्र मांगने से दुनियाभर का व्यापार प्रभावित हो सकता है.

यह मुद्दा इतना गंभीर है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा था कि वो भारत के साथ इंडोनेशिया जैसी खुली व्यापारिक डील करना चाहते हैं, लेकिन भारत के नियम और शर्तें इसमें बड़ी रुकावट बन रही हैं.

ट्रेड डील अटकी हुई क्यों है?

भारत का रुख इस मामले में बिल्कुल साफ है देश की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं से कोई समझौता नहीं होगा. सरकार का साफ कहना है कि अगर किसी गाय को मांस या खून वाला चारा खिलाया गया है, तो उसके दूध को तभी भारत में आने दिया जाएगा जब उसका प्रमाण पत्र होगा. बिना ऐसे सर्टिफिकेट के नॉन-वेज दूध भारत में नहीं बिक सकेगा. दूसरी ओर, अमेरिका इस शर्त को मानने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि भारत और अमेरिका के बीच चल रही ट्रेड डील अब तक फंसी हुई है.

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Published: 16 Jul, 2025 | 12:56 PM

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