प्याज में लगा ‘गलका रोग’, दो दिन में ही सूख जा रहे हैं पौधे.. बचाव के लिए इस दवा का करें स्प्रे

प्याज की नर्सरी में गलका रोग (डैंपिंग ऑफ) फैल रहा है, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, टैबुकेनाजोल और ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन का गहरा छिड़काव पौधों को बचा सकता है. समय पर खाद और पानी देने से फसल सुरक्षित रहती है.

Kisan India
नोएडा | Published: 10 Dec, 2025 | 02:59 PM

Onion Farming: प्याज की खेती केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश में भी किसान बड़े स्तर पर करते हैं. लेकिन इस बार मध्य प्रदेश के प्याज किसानों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कहा जा रहा है कि प्याज बुवाई से पहले प्याज की नर्सरी में गंभीर बीमारी लग गई है. इससे पौधों की गुणवत्ता बिगड़ गई है. अगर किसान इन पौधों की रोपाई करते हैं, तो पैदावार में गिरावट आएगी. हालांकि, किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम कुछ जरूरी दवाइयों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल करते ही  प्याज के पौधों को इस रोग से राहत मिलेगी.

दरअसल, मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में किसान दिसंबर से जनवरी के बीच बड़े स्तर पर प्याज की रोपाई  करते हैं. लेकिन इस बार किसानों को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. नर्सरी में 2 से 3 इंच की ऊंचाई तक पहुंचते हैं पौधे पीले पड़ रहे हैं और इसके बाद कुछ ही दिनों में सूख जाते हैं. कृषि अधिकारियों के अनुसार, गलका रोग के चलते ऐसा हो रहा है. खास बात यह है कि गलका रोग को डैंपिंग ऑफ भी कहा जाता है. यह रोग बहुत तेजी से फैलता है और सिर्फ दो से तीन दिनों में पूरी नर्सरी को नुकसान पहुंचा सकता है.

पौध को तैयार होने में 35 से 40 दिन लगते हैं

किसान इस बीमारी को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि प्याज के पौध को तैयार होने में 35 से 40 दिन लगते हैं और इस समय रोग सबसे ज्यादा फैलता है. कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, नर्सरी तैयार होने के बाद गलका रोग  का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए इस दौरान किसान सावधान रहें. एक्सपर्ट का कहना है कि लगातार पानी देने और खाद देर से डालने से नर्सरी कमजोर हो जाती है और फफूंद का अटैक शुरू हो जाता है, जिससे पौधे पीले पड़ते हैं और धीरे-धीरे सूख जाते हैं.

इस दवाई का करें नर्सरी में स्प्रे

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि गलका रोग से बचने के लिए टैबुकेनाजोल 50 फीसदी और ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन का स्प्रे सबसे असरदार है. इसके लिए ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन या इमिडाक्लोप्रिड 70 फीसदी को पानी में घोलकर नर्सरी में गहराई से छिड़काव करना चाहिए, ताकि दवा जड़ों तक पहुंचे. इसका असर 2 से 3 दिन में दिखने लगता है और पौधे फिर से हरे होने लगते हैं. नर्सरी तैयार होने से पहले खेत में खाद  डालना चाहिए, ताकि पौधों को शुरुआत में ही सही पोषण मिले और बीमारी व कीटों का खतरा कम हो. अगर किसान समय पर सावधानी रखें और दवाइयों का सही इस्तेमाल करें, तो नर्सरी को इस रोग से बचाया जा सकता है.

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