Paddy Farming: धान फसल के लिए अक्टूबर का महीना बेहद ही संवेदनशील होता है. इन दिनों देश के पंजाब, हरियाणा समेत कुछ हिस्सों में फसल कटकर घरों और मंडियों पहुंच गई है, जबकि, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य कुछ हिस्सों में अभी फसल पककर तैयार है कटाई की प्रक्रिया में है. ऐसे में कुछ इलाकों में धान फसल पर गलका रोग (Sheath Blight) का खतरा मंडरा रहा है. गलका रोग के प्रकोप से न केवल फसल चौपट होती है बल्कि किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इस रोग में धान की पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में फैलकर पत्तियों से बालियों में दाने तक को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके संक्रमण से धान की उपज 20 से 25 फीसदी तक घट सकती है. धान की फसल को गलका रोग के बचाने के लिए जरूरी है कि समय रहते किसान ये 5 जरूरी काम कर लें.
1-बुवाई से पहले खेत की सफाई
अगर आप धान की फसल से अच्छी और रोग मुक्त फसल लेना चाहते हैं को जरूरी है कि धान बुवाई से पहले खेत की अच्छे से साफ-सफाई कर ली जाए. ताकि पिछले फसल के अवशेष न बाकी रह जाएं. बता दें कि, धान के खेत में खरपतवार और पुराने पौधों के अवशेष रोग फैलने का मुख्य कारण होते हैं. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है हर सीजन में खेत को अच्छी तरह साफ करें और फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएं.
2- रोगमुक्त बीजों का चुनाव
किसानों को ये खास सलाह दी जाती है कि वे धान की खेती के लिए हमेशा प्रमाणित और रोगमुक्त बीजों का ही चुनाव करें. बेहतर होता है अगर किसान धान की उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाए. मिट्टी में धान के बीजों को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा जैसे फफूंदनाशक से उनका उपचार जरूर करें, ताकि अंकुरण दर तेज हो और फसल पर भी रोगमुक्त हो.
3- खाद का संतुलित इस्तेमाल
मीडिया रिपोर्टेस के अनुसार, आमतौर पर गलका रोग (Sheath Blight) नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा और लगातार पानी भराव के कारण फैलता है. इसलिए खेत की तैयार करते समय इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि खेत में जल निकासी के उचित इंतजाम हो औप पानी जमने न पाए. इसके साथ ही धान की फसल में संतुलित मात्रा में ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें.
4- रोग नियंत्रण के लिए जैविक उपाय
किसान अगर धान की रोपाई के समय ही खेतों में जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करें, खेती के लिए जैविक तरीका अपनाएं तो रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है. किसान चाहें तो खेती में ट्राइकोडर्मा, प्सूडोमोनास फ्लोरेसेंस जैसे जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसा करने से न केवल मिट्टी में मौजूद फायदेमंद जीवाणुओं की संख्या बढ़ेती है बल्कि ये जैविक उत्पाद रोगजनक जीवाणुओं को दबाते भी हैं.
5- कीटनाशकों का छिड़काव
धान फसल पर अकसर कीटों या रोगों का हमला हो जाता है और किसान समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाए. किसान चाहें तो फसल पर कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशित WP या थायोफेनेट मिथाइल जैसे फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं.