Farming Tips: लौकी, जिसे हेल्थ के लिहाज से एक महत्वपूर्ण सब्जी माना जाता है, किसानों के लिए लाभदायक फसल है. इसकी बाजार में लगातार मांग रहती है और कम लागत में उत्पादन भी अधिक होता है. लेकिन कई बार किसान अपनी फसल से निराश हो जाते हैं, क्योंकि लौकी के छोटे फल सड़ने लगते हैं और बाजार भेजने लायक नहीं रहते. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि लौकी के नवजात फल क्यों खराब होते हैं और इसे बचाने के उपाय क्या हैं.
फफूंद जनित रोग
बरसात के मौसम में लौकी के छोटे फलों पर सबसे अधिक असर फंगल रोगों का पड़ता है. फाइटोफ्थोरा ब्लाइट और एन्थ्रेक्नोज जैसे रोग फलों पर काले या भूरे धब्बे बना देते हैं. ये धब्बे धीरे-धीरे फल को सड़ने लगाते हैं और पूरी उपज को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
जीवाणु रोगों का प्रभाव
अत्यधिक नमी के कारण बैक्टीरियल वेट रोट जैसी बीमारियां तेजी से फैलती हैं. नवजात फलों में पानी जैसे धब्बे उभर आते हैं, जो सड़ने लगते हैं और बदबूदार तरल छोड़ते हैं. ये रोग अक्सर जल्दी फैलते हैं और उपज को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं.
कीटों का प्रकोप
फ्रूट फ्लाई और रेड पंपकिन बीटल जैसे कीट भी लौकी की फसल के लिए खतरा बनते हैं. ये कीट नवजात फलों में छेद कर देते हैं, जिससे फलों में फफूंद और जीवाणु संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इससे फलों का स्वास्थ्य बिगड़ता है और बाजार में उन्हें बेच पाना मुश्किल हो जाता है.
जलवायु और मौसम का असर
अत्यधिक नमी, बार-बार बारिश और तापमान में बदलाव से पौधों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं. कमजोर जड़ वाले पौधों के फल ठीक से विकसित नहीं हो पाते और जल्दी खराब होने लगते हैं.
गलत कृषि-प्रबंधन
असंतुलित उर्वरक का इस्तेमाल, रसायनों का अधिक प्रयोग और फसल प्रबंधन में लापरवाही से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इसके चलते फल समय पर ठीक से विकसित नहीं होते और उनका आकार छोटा या खराब हो जाता है.
कैसे बचाएं लौकी के नवजात फल
किसान बीज बोने से पहले बीज उपचार करें. कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से बीज को उपचारित करने से फफूंद जनित रोगों से बचाव होता है. खेत की सफाई और खरपतवार हटाना जरूरी है. कीटों से बचाव के लिए फेरोमोन ट्रैप और जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करें. ड्रिप सिंचाई अपनाएं और खेत में जलभराव न होने दें. पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा और धूप अच्छे से पहुंचे.
तुड़ाई और उपज
लौकी के फल 50-60 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. नियमित तुड़ाई और सही प्रबंधन से एक हेक्टेयर खेत से औसतन 200-250 क्विंटल लौकी की उपज प्राप्त की जा सकती है. यदि किसान इन सावधानियों को अपनाते हैं, तो वे अपनी फसल को बचाकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और बाजार में गुणवत्ता बनाए रख सकते हैं.