मिट्टी में जान फूंक देती है यह फसल.. खेती की लागत हो जाएगी आधी.. कई सालों तक नहीं पड़ेगी खाद की जरूरत

यह एक ऐसी फसल है जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है और रासायनिक खादों की जरूरत को कम करती है. इसकी बुवाई से खेती की लागत घटती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 13 Oct, 2025 | 12:52 PM

Dhaincha cultivation: अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल के चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही  है. इससे उत्पादन में गिरावट आई है और खेती में लगात भी बढ़ गई है. ऐसे में किसानों की कमाई पर असर पड़ रहा है. लेकिन अब किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम एक ऐसी फसल के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसकी बुवाई करने पर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाएगी. ऐसे में किसानों को अगली फसल की खेती करने पर लागत कम आएगी. यानी यह फसल मिट्टी के लिए जादू का काम करती है. साथ ही खेती में डीएपी और पोटाश डालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

दरअसल, हम जिस फसल के बारे में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम ढेंचा है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, ढेंचा खेती  में महंगे रासायनिक खादों और मिट्टी की घटती ताकत के बीच किसानों के लिए अब राहत की एक नई उम्मीद है. यानी ढेंचा की फसल किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि ढेंचा मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाता है और इससे रासायनिक खादों पर होने वाला खर्च लगभग आधा हो जाता है.

कब करते हैं इसकी बुवाई

एक्सपर्ट के मुताबिक, किसान पारंपरिक तरीके से धान की खेती करते हैं, उनके लिए ढेंचा एक बेहतरीन प्राकृतिक खाद  की तरह काम करता है. इसकी बुवाई अप्रैल से मई के बीच करनी चाहिए. यह पौधा करीब ढाई से तीन फीट तक बढ़ता है. जुलाई- अगस्त में जब धान की रोपाई का समय आता है, तो ढेंचा को ट्रैक्टर से जोतकर खेत में ही मिला दिया जाता है. इससे मिट्टी को पोषण  मिलता है और खेत धान की खेती के लिए तैयार हो जाता है. इसके बाद ढेंचा को 3 से 4 दिन तक खेत में ऐसे ही छोड़ देना चाहिए, ताकि यह अच्छे से सड़ सके.

नहीं पड़ेगी खाद की जरूरत

हालांकि, इस दौरान इसकी पत्तियां, टहनियां और रेशे पूरी तरह गलकर मिट्टी में मिल जाते हैं. इससे मिट्टी में प्राकृतिक नाइट्रोजन,  फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा बढ़ जाती है. जब किसान इसके बाद धान की रोपाई करते हैं, तो फसल को रासायनिक डीएपी या पोटाश से ज्यादा जैविक पोषण मिलता है. यानी अब खेत में डीएपी या पोटाश डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

आधा हो जाएगा खर्च

ढेंचा से बनी ये प्राकृतिक खाद मिट्टी की ताकत को लंबे समय तक बनाए रखती है और बार-बार रासायनिक खाद  डालने की जरूरत नहीं पड़ती. जहां आमतौर पर खेतों में 10 किलो रासायनिक खाद लगती है, वहीं ढेंचा वाले खेत में सिर्फ 5 किलो खाद से ही काम चल जाता है. इससे किसानों की लागत घटती है और फसल की क्वालिटी भी बेहतर होती है. खास बात यह है कि ढेंचा की ‘पीवी ढेंचा-1’ किस्म सबसे बेहतर मानी जाती है. इसका इस्तेमाल न सिर्फ जैविक खाद बनाने के लिए, बल्कि बीज उत्पादन के लिए भी किया जाता है. इस किस्म की खास बात यह है कि यह जल्दी गल जाती है और मिट्टी में भरपूर जैविक तत्व छोड़ती है, जिससे अगली फसल को प्राकृतिक पोषण लगातार मिलता रहता है.

 

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Published: 13 Oct, 2025 | 12:46 PM

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