सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि फसल इस वक्त दाने भरने की अवस्था में है. इस समय यदि सही देखरेख न की जाए तो कीट और रोग फसल को भारी नुकसान पहुँचा सकते हैं. ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IISR) द्वारा किसानों को कुछ जरूरी उपाय अपनाने की सलाह दी गई है जिससे फसल को बचाया जा सके और उत्पादन में कमी न आए. आइए जानते हैं इस समय पर किए जाने वाले जरूरी कीट और रोग नियंत्रण के उपाय.
तम्बाकू की इल्ली से बचाव के उपाय
तम्बाकू की इल्ली (Spodoptera litura) इस समय फसल की पत्तियाँ खाकर उसे कमजोर बना देती है. इससे पौधा दाने नहीं भर पाता. इसके नियंत्रण के लिए किसान निम्न में से किसी भी एक कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं:
- क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी SC– 150 मि.ली./हेक्टेयर
- स्पायनेटोरम 11.7 फीसदी SC– 450 मि.ली./हेक्टेयर
- इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी EC– 425 मि.ली./हेक्टेयर
- फ्लूबेंडियामाइड 20 फीसदी WG– 250-300 ग्राम/हेक्टेयर
- इंडोक्साकार्ब 15.8 फीसदी EC– 333 मि.ली./हेक्टेयर
छिड़काव करते समय हवा का रुख देखना जरूरी है ताकि दवा सही दिशा में जाए और प्रभावी हो.
फली छेदक इल्ली (पॉड बोरर) का प्रकोप
इस समय चने की इल्ली (हेलिओथिस) फली में घुसकर अंदर के दानों को खा जाती है, जिससे फसल की उपज पर सीधा असर पड़ता है. किसान भाई इससे बचाव के लिए इन में से किसी एक दवा का छिड़काव करें: इंडोक्साकार्ब 15.80 प्रतिशत EC (333 मि.ली./हे), इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 प्रतिशत EC (425 मि.ली./हे), फ्लूबेंडियामाइड 20 फीसदी WG (250–300 ग्राम/हे) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी SC (150 मि.ली./हे). बेहतर असर के लिए किसान एनपीवी (250 LE/हे) का भी छिड़काव कर सकते हैं. दवा छिड़कते समय पौधों की फलियों पर विशेष ध्यान दें.
सेमीलूपर इल्ली से सुरक्षा के उपाय
सेमीलूपर इल्ली इस समय सोयाबीन की पत्तियों को खाकर फसल को कमजोर कर रही है, जिससे पैदावार पर असर पड़ सकता है. इस इल्ली को रोकने के लिए किसान भाई नीचे दी गई किसी एक दवा का छिड़काव करें: क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी SC (150 मि.ली./हे), लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.90 प्रतिशत CS (300 मि.ली./हे), ब्रोफ्लानिलाइड 300 g/l SC (42–62 ग्राम/हे) या प्रोफेनोफॉस 50% EC (1 लीटर/हे). दवा को 500 लीटर पानी/हेक्टेयर के हिसाब से मिलाएं और पत्तियों के ऊपर व नीचे अच्छे से छिड़काव करें, ताकि असर पूरी तरह हो.
पत्ती खाने वाली इल्ली के संयुक्त नियंत्रण के उपाय
अगर आपके खेत में एक साथ तीनों तरह की पत्ती खाने वाली इल्लियाँ यानी सेमीलूपर, तंबाकू की इल्ली और चने की इल्ली दिखाई दें, तो समय रहते इनका एक साथ इलाज करना जरूरी है. इसके लिए आप इन में से किसी एक दवा का छिड़काव करें: स्पायनेटोरम 11.7 प्रतिशत SC (450 मि.ली./हे), क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी SC (150 मि.ली./हे) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (200 मि.ली./हे). ये दवाएं सभी इल्लियों पर एक साथ असर करती हैं और फसल को नुकसान से बचाती हैं. दवा छिड़कते समय पानी की सही मात्रा का उपयोग जरूर करें.
पीला मोजेक वायरस रोग का नियंत्रण
अगर सोयाबीन की फसल में पीले मोजेक रोग के लक्षण जैसे पत्तियों पर पीले धब्बे दिखने लगें, तो ऐसे पौधों को तुरंत उखाड़कर खेत से बाहर फेंक दें ताकि बीमारी न फैले. यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है, इसलिए इसकी रोकथाम जरूरी है. इसके लिए फ्लोनिकामिड 50 फीसदी WG (200 ग्राम/हे), थायोमेथोक्सम + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली./हे) या एसिटामिप्रिड + बायफेंथ्रिन (250 ग्राम/हे) में से किसी एक दवा का छिड़काव करें. साथ ही, खेत में पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं ताकि सफेद मक्खियां चिपककर मर जाएं और रोग न फैले.
फफूंदजनित रोगों (एन्थ्राक्नोज और रायजोक्टोनिया) से बचाव
एन्थ्राक्नोज रोग के लक्षण जैसे डंठल, पत्तियों या फली पर काले धब्बे दिखते ही तुरंत फसल पर उपचार करें. इसके नियंत्रण के लिए टेबूकोनाजोल 25.9 प्रतिशत EC (625 मि.ली./हे), टेबूकोनाजोल + सल्फर 65 फीसदी WG (1.25 कि.ग्रा./हे) या कार्बेन्डाजिम + मैनकोजेब (1.25 कि.ग्रा./हे) का छिड़काव करें. वहीं, रायजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के लिए फ्लुक्सापाय्रॉक्साड + पायरोक्लोस्ट्रोबिन (300 ग्राम/हे) या पायरोक्लोस्ट्रोबिन + एपॉक्सीकोनाजोल (750 मि.ली./हे) का प्रयोग करें. ध्यान रहे कि छिड़काव के समय बारिश की संभावना न हो, वरना दवा बह जाने से असर नहीं होगा.
अन्य महत्वपूर्ण सलाह
जैविक खेती करने वाले किसान अपनी फसल को कीटों से बचाने के लिए बेसिलस थुरिंजिनेसिस, ब्युवेरिया बेसियाना या नोमुरिया रिलियाई जैसे जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें (1 लीटर/हेक्टेयर). साथ ही, खेत में T आकार के बर्ड पर्चेस लगाएं ताकि कीटभक्षी पक्षी आकर इल्लियों को खा सकें. फेरोमोन ट्रैप और लाइट ट्रैप लगाने से कीटों की संख्या कम करने में मदद मिलती है. छिड़काव करते समय पानी की मात्रा सुनिश्चित करें- नेपसैक स्प्रेयर के लिए 450–500 लीटर/हे और पावर स्प्रेयर के लिए 120–200 लीटर/हे. केवल उन्हीं रसायनों का प्रयोग करें जिन्हें भारत सरकार ने अनुमति दी हो.