संकट में फंसी टेक्सटाइल इंडस्ट्री, कपास पर लगा 11 फीसदी आयात शुल्क बना बड़ी बाधा

देश में इस साल कपास की पैदावार कम हुई है. अनियमित बारिश, कीट प्रकोप और मौसम में बदलाव की वजह से कपास की गुणवत्ता और मात्रा दोनों प्रभावित हुई हैं. इसके अलावा MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ने से घरेलू कपास की कीमतें और ऊपर चली जाती हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 10 Dec, 2025 | 07:54 AM

Cotton Import: भारत का कपास और टेक्सटाइल उद्योग लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है. किसानों से लेकर बड़ी-बड़ी स्पिनिंग मिलों तक, पूरा मूल्य श्रृंखला लाखों रोजगारों को संभाले हुए है. लेकिन पिछले कुछ सालों में यह उद्योग गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, कभी घरेलू उत्पादन गिरने से दाम बढ़ जाते हैं, तो कभी वैश्विक बाार की अनिश्चितताएं असर डालती हैं. इसी पृष्ठभूमि में कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) ने सरकार से मांग की है कि कच्चे कपास के आयात पर लगाई गई 11 फीसदी कस्टम ड्यूटी को पूरी तरह हटाया जाए, ताकि उद्योग इस संकट से बाहर निकल सके.

आइए समझते हैं कि यह मांग क्यों की जा रही है, उद्योग की हालत क्या है और इसका किसानों व निर्यात पर क्या असर पड़ सकता है.

कॉटन आयात पर 11 फीसदी ड्यूटी क्यों है और विवाद क्या है?

बिजनेस लाइन के अनुसार,  कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाार में कीमतों में उतार-चढ़ाव और सप्लाई की अनिश्चितता को देखते हुए सरकार ने कपास के आयात पर 11 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाई थी. इससे घरेलू किसानों को कुछ राहत मिली, क्योंकि विदेशी कपास महंगा हो गया और देश में खरीदी बढ़ी.

लेकिन अब स्थिति बदल गई हैभारत में उत्पादन घटा है, फाइबर की गुणवत्ता प्रभावित हुई है और कई मिलें घरेलू कपास महंगा होने के कारण काम बंद करने की कगार पर पहुंच गई हैं. इसी वजह से CAI का कहना है कि यह ड्यूटी अब उद्योग के लिए बाधा बन चुकी है.

टेक्सटाइल उद्योग पर बढ़ता संकट

CAI अध्यक्ष विनय एन. कोटक के अनुसार भारत का टेक्सटाइल उद्योग इस समय “सबसे कठिन दौर” से गुजर रहा है.

  • अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ ने निर्यात घटा दिया है.
  • यूरोप में मंदी की वजह से तैयार कपड़ों की मांग कम हो गई है.
  • घरेलू कपास महंगा होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाार में भारतीय वस्त्र प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाए हैं.

इन चुनौतियों के बीच 11 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी उद्योग की लागत और बढ़ा रही है, जिससे कई मिलें नुकसान में जा रही हैं.

कपास महंगा क्यों है?

देश में इस साल कपास की पैदावार कम हुई है. अनियमित बारिश, कीट प्रकोप और मौसम में बदलाव की वजह से कपास की गुणवत्ता और मात्रा दोनों प्रभावित हुई हैं. इसके अलावा MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ने से घरेलू कपास की कीमतें और ऊपर चली जाती हैं. जब विदेशी कपास सस्ता उपलब्ध हो, लेकिन उस पर ड्यूटी लग जाए तो मिलों को मजबूरी में महंगा घरेलू कपास खरीदना पड़ता है. इसी असमानता को CAI ठीक करना चाहती है.

ड्यूटी हटेगी तो क्या फायदा?

CAI का दावा है कि आयात शुल्क हटने से उद्योग को कई तरह से राहत मिलेगी

  • मिलों को सस्ता कपास मिलेगा, जिससे लागत घटेगी.
  • तैयार कपड़े अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिर से प्रतिस्पर्धी हो सकेंगे.
  • टेक्सटाइल इंडस्ट्री को स्थिरता मिलेगी और रोजगार सुरक्षित रहेंगे.
  • भारत 2030 तक 100 अरब डॉलर टेक्सटाइल निर्यात का लक्ष्य आसानी से हासिल कर सकता है.

CAI ने यह भी कहा कि किसान पहले से MSP के जरिए सुरक्षित हैं, इसलिए ड्यूटी हटने से उनकी आय पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा.

गुणवत्ता समस्या

2025-26 सीजन में अनियमित बारिश से भारतीय कपास की गुणवत्ता खराब हुई है. फाइबर छोटा और कमजोर है, जिसे हाई-क्वालिटी धागा बनाने वाली मिलें इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं. उनके मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर के अनुसार धागा और कपड़ा बनाने के लिए उन्हें विदेशी कपास की जरूरत पड़ेगी.

अगर ड्यूटी नहीं हटाई गई, तो भारतीय वस्त्र वैश्विक बाार में महंगे पड़ेंगे और ऑर्डर वियतनाम, बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों को मिल जाएंगे.

कितनी कपास आयात होने का अनुमान?

CAI के ताा अनुमान के अनुसार इस साल भारत 50 लाख गांठ (bales) कपास आयात कर सकता है, जो पिछले साल के 41 लाख गांठ के मुकाबले काफी अधिक है. देश में कुल उत्पादन लगभग 309.5 लाख गांठ, जबकि घरेलू खपत 295 लाख गांठ रहने का अनुमान है.

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