BRICS Grain Exchange: अमेरिका द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने के फैसले ने BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) को एकजुट कर दिया है. अब ये देश एक नई “BRICS ग्रेन एक्सचेंज” की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, ताकि अमेरिका के शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (CME) जैसी अमेरिकी ट्रेडिंग प्रणालियों पर निर्भरता कम की जा सके. रूस और ब्राजील की इस संयुक्त पहल से भारत को भी बड़ा आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है.
अपनी ‘ग्रेन एक्सचेंज’ बनाने की तैयारी
रूस ने BRICS के अंदर एक स्वतंत्र अनाज व्यापार मंच की शुरुआत करने का प्रस्ताव दिया है. इसका उद्देश्य गेहूं, मक्का (कॉर्न) और जौ जैसे प्रमुख अनाजों का व्यापार बिना किसी बाहरी दबाव के करना है. भविष्य में इस एक्सचेंज में तेल बीज, दालें, चावल और सोयाबीन जैसे उत्पाद भी शामिल किए जा सकते हैं.
रूसी उप-प्रधानमंत्री दिमित्री पत्रुशेव ने हाल ही में भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस विषय पर चर्चा की थी. रूस चाहता है कि 2026 में इसका पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो और 2027 तक इसे पूरी तरह लागू कर दिया जाए.
खाद्य सुरक्षा रिजर्व का प्रस्ताव
दूसरी ओर, ब्राजील ने BRICS देशों के लिए एक “फूड सिक्योरिटी रिजर्व” (खाद्य सुरक्षा भंडार) बनाने का सुझाव दिया है. इसका उद्देश्य है भविष्य में किसी भी आपूर्ति संकट, मूल्य अस्थिरता या जलवायु आपदाओं के दौरान सदस्य देशों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना.
यह रिजर्व ब्राजील के 2025 BRICS अध्यक्षता काल के दौरान प्रस्तावित किया गया था और अप्रैल 2025 में सभी सदस्य देशों ने इस विचार का समर्थन किया.
भारत को होगा बड़ा फायदा
भारत के लिए यह योजना कई मायनों में महत्वपूर्ण है. एक ओर, यह वैश्विक अनाज बाजारों पर अमेरिकी दबदबे को कम करेगी, वहीं दूसरी ओर, भारत को अपने कृषि उत्पादों के लिए नए निर्यात बाजार मिलेंगे. इसके अलावा, BRICS के भीतर अनाज व्यापार बढ़ने से भारत की आयात निर्भरता भी घटेगी.
नई विकास बैंक (NDB) की भूमिका
BRICS की न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) इस परियोजना के पायलट चरण के लिए धन उपलब्ध करवाएगी. शुरुआती परीक्षण के बाद 2026 से 2028 के बीच इसे पूरी तरह लागू करने की योजना है.
अमेरिका के खिलाफ आर्थिक संतुलन
अमेरिका द्वारा आयात शुल्क बढ़ाने के फैसले के बाद BRICS देशों के बीच व्यापार पर असर पड़ा है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से अमेरिका ने ट्रेड को राजनीतिक हथियार बना लिया है. इसी कारण अब BRICS देश एकजुट होकर अपना वैकल्पिक तंत्र खड़ा करने में जुटे हैं.
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि इस परियोजना के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं जैसे कि कानूनी ढांचा, सीमा पार व्यापारिक नियमों की एकरूपता, और तत्काल तरलता की कमी. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह योजना फिलहाल अधिक महत्वाकांक्षी है, लेकिन यदि इसे सही दिशा में आगे बढ़ाया गया तो यह विश्व अनाज व्यापार का नया मॉडल बन सकती है.