Hilsa fish price: बांग्लादेश में हिल्सा मछली की कीमतें इस साल रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई हैं. हिल्सा की हर साइज की कीमतें पिछले साल की तुलना में 28–52 फीसदी तक बढ़ गई हैं. खासतौर पर दुर्गा पूजा जैसे त्योहार के मौके पर मांग बढ़ने के कारण कीमतों में और उछाल आया. 4 अक्टूबर से सरकार ने मादर हिल्सा की सुरक्षा के लिए हिल्सा पकड़ने, ले जाने, बेचने और संग्रह करने पर 25 अक्टूबर तक प्रतिबंध लगा दिया.
बाजार में बढ़ती कीमतें और मांग
धाका के शाहजादपुर, उत्तर बड्डा, मोहाखली और कारवान बाजारों में प्रतिबंध से पहले 1–1.25 किलो की हिल्सा की कीमत 2,200–2,500 टका प्रति किलोग्राम थी. वहीं 700–900 ग्राम की हिल्सा 1,800–2,000 टका में बिक रही थी. पिछले साल इसी समय हिल्सा की कीमतें 1,800–2,000 टका प्रति किलोग्राम थीं. यानी केवल एक साल में कीमतों में 800–900 टका की बढ़ोतरी हुई.
हिल्सा की बढ़ती कीमतों के पीछे मांग और आपूर्ति में असंतुलन, मध्यस्थों का दखल, स्टॉकपाइलिंग, ईंधन और परिवहन लागत में वृद्धि जैसे कारण हैं. बड़े हिल्सा मछलियों की कमी ने बाजार में छोटे हिल्सा की उपलब्धता बढ़ा दी, जिससे कीमतें और अधिक बढ़ गईं.
निर्यात पर बड़ा असर
उच्च घरेलू कीमतों के कारण हिल्सा निर्यात भी प्रभावित हुआ. दुर्गा पूजा के लिए भारत को 1,200 टन हिल्सा निर्यात की अनुमति थी, लेकिन केवल 145 टन ही भेजा गया, जो पिछले 7 साल का सबसे कम आंकड़ा है. इसके चलते भारत में बांग्लादेशी हिल्सा की उपलब्धता कम रही और म्यांमार की सस्ती हिल्सा अधिक बिक रही.
मछुआरों की चुनौती और उत्पादन में गिरावट
फरिदा अख्तर, फिशरीज और लिवेस्टॉक सलाहकार के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में हिल्सा की पकड़ लगभग 10 फीसदी घट गई है. जुलाई और अगस्त में पिछले साल की तुलना में 33 फीसदी और 47 फीसदी कम हिल्सा पकड़ी गई. मछुआरों को उच्च ईंधन लागत, मजदूरी और ट्रॉवलर संचालन खर्च का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें लाभ कम और उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करना पड़ता है.
भारत पर असर
बांग्लादेश में हिल्सा मछली की बढ़ती कीमतों और निर्यात में कमी का असर भारत पर भी सीधे पड़ रहा है. भारत में खासकर पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिल्सा की भारी मांग रहती है, खासकर दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों के समय. इस साल बांग्लादेश से केवल 145 टन हिल्सा ही भारत भेजी गई, जबकि 1,200 टन भेजी जानी थी. इस कमी के कारण बाजार में कीमतें आसमान छू रही हैं, उपभोक्ताओं को हिल्सा मछली खरीदने के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा है, और स्थानीय मछली व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है. साथ ही, म्यांमार जैसी अन्य आपूर्ति से सस्ती हिल्सा तो उपलब्ध हो रही है, लेकिन गुणवत्ता और स्वाद के मामले में बांग्लादेशी हिल्सा की जगह नहीं ले पा रही.
पर्यावरण और जलवायु के प्रभाव
हिल्सा मछलियों की प्रवास और प्रजनन पर पर्यावरणीय बदलाव और नदी की संरचना का असर पड़ा है. कम बारिश, पानी का स्तर घटना, नदी में अवरोध और प्रदूषण ने हिल्सा के प्रजनन और प्रवास को मुश्किल बना दिया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि हिल्सा गहरी पानी में रहती हैं, और नदी की असमान परिस्थितियों और मानव गतिविधियों के कारण उनकी संख्या कम हो गई है.