Chilli Production: देश में मसालों की खेती इस बार कई चुनौतियों से गुजर रही है और लाल मिर्च भी इससे अछूती नहीं रही. साल 2025-26 के लिए लाल मिर्च की फसल को लेकर जो शुरुआती संकेत मिल रहे हैं, वे किसानों और कृषि बाजार दोनों के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं. अनुमान है कि इस सीजन में लाल मिर्च का कुल उत्पादन करीब 20 प्रतिशत तक घट सकता है. इसकी बड़ी वजह कम बुवाई, मानसून की अनियमितता और कीटों का बढ़ता प्रकोप बताया जा रहा है. हालांकि राहत की बात यह है कि पिछले सीजन का बचा हुआ भारी स्टॉक बाजार में उपलब्ध रहेगा, जिससे आम उपभोक्ताओं को कीमतों में तेज उछाल का सामना शायद न करना पड़े.
क्यों घट रहा है लाल मिर्च का रकबा
इस बार किसानों ने लाल मिर्च की खेती से कुछ हद तक दूरी बना ली है. पिछले कुछ वर्षों में मिर्च की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव और बढ़ती लागत ने किसानों को दूसरे विकल्प तलाशने पर मजबूर किया. कई इलाकों में किसानों ने मक्का, कपास और दालों जैसी फसलों को ज्यादा सुरक्षित और लाभकारी मानते हुए उन्हीं की बुवाई की. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस बदलाव का सीधा असर मिर्च के रकबे पर पड़ा है. अनुमान है कि देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों में मिर्च की खेती का क्षेत्रफल 25 से 30 प्रतिशत तक घट गया है.
उत्पादन में 11.4 लाख टन तक सिमटने की आशंका
कम रकबे और मौसम की मार का असर अब उत्पादन के आंकड़ों में भी दिखने लगा है. विशेषज्ञों का मानना है कि 2025-26 में लाल मिर्च का कुल उत्पादन करीब 11.4 लाख टन रह सकता है, जबकि पिछले सीजन में यह लगभग 14.1 लाख टन था. यानी एक ही साल में करीब 20 प्रतिशत की गिरावट संभव है. कई इलाकों में भारी बारिश ने फसल की जड़ों को नुकसान पहुंचाया, वहीं कीटों के हमलों ने भी पौधों की सेहत बिगाड़ दी. इससे पैदावार पर सीधा असर पड़ा है.
पुराने स्टॉक से बाजार को सहारा
नई फसल भले ही कम हो, लेकिन बाजार में मिर्च की कमी फिलहाल नहीं दिख रही. इसकी वजह है गोदामों में भरा हुआ पिछला स्टॉक. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में बड़ी मात्रा में कैरी-फॉरवर्ड स्टॉक मौजूद है. जानकारों के मुताबिक आंध्र प्रदेश में करीब 55 लाख बैग, तेलंगाना में 36 लाख बैग और कर्नाटक में लगभग 45 लाख बैग मिर्च पहले से जमा है. कोल्ड स्टोरेज में कुल स्टॉक भी पिछले साल की तुलना में ज्यादा बताया जा रहा है. यही कारण है कि कीमतों पर फिलहाल दबाव नहीं बन रहा.
निर्यात मोर्चे पर चीन की सुस्ती
लाल मिर्च के निर्यात को लेकर भी इस समय माहौल थोड़ा ठंडा है. भारत के सबसे बड़े खरीदारों में शामिल चीन से मांग कमजोर बनी हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में इस बार स्थानीय उत्पादन अच्छा रहा है, इसलिए वहां से आयात की जरूरत कम हो गई है. इसका असर भारतीय निर्यातकों पर भी पड़ा है. निर्यात मांग सुस्त रहने से घरेलू बाजार में उपलब्धता और बढ़ गई है, जिससे कीमतें नियंत्रण में बनी हुई हैं.
कर्नाटक की ब्यादगी मिर्च पर मौसम की मार
कर्नाटक की मशहूर ब्यादगी मिर्च भी इस बार चुनौतियों से जूझ रही है. मानसून के दौरान, खासकर अगस्त में हुई भारी बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया. अनुमान है कि राज्य में 10 से 15 प्रतिशत तक फसल खराब हुई है. इसके बावजूद ब्यादगी मिर्च की प्रीमियम क्वालिटी के कारण इसके दाम मजबूत बने हुए हैं. फिलहाल इसके भाव 40,000 से 45,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहे हैं, जो पिछले साल से ज्यादा हैं. हालांकि स्टॉक अभी भी सामान्य से ऊपर बताया जा रहा है.
जनवरी में साफ होगी तस्वीर
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई इलाकों में मिर्च की फसल अभी फूल और फल आने की अवस्था में है. कर्नाटक में नई फसल की आवक धीरे-धीरे शुरू हो चुकी है. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी के पहले सप्ताह तक फसल की वास्तविक स्थिति और उत्पादन के आंकड़े साफ हो जाएंगे. तब तक यही कहा जा सकता है कि लाल मिर्च की पैदावार घटेगी जरूर, लेकिन पुराने स्टॉक के चलते बाजार और उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिल सकती है.