Soybean Production: भारत में सोयाबीन की फसल इस साल कम क्षेत्र और कम उपज के कारण 16 फीसदी घटकर लगभग 105 लाख टन रहने का अनुमान है. यह पिछले साल के 125.81 लाख टन की तुलना में 20.51 लाख टन कम है. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक बारिश, येलो मोजेक वायरस और एरियल ब्लाइट जैसी पत्तियों की बीमारी ने इस फसल की उपज को प्रभावित किया है.
उपज में गिरावट और फसल क्षेत्र का हाल
SOPA के अनुसार, खारिफ 2025 के लिए सोयाबीन का बोने का क्षेत्र लगभग 114.558 लाख हेक्टेयर था, जबकि सरकार का अनुमान 120.43 लाख हेक्टेयर था. SOPA ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर यह आंकड़े जारी किए हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि अधिकांश प्रमुख उत्पादन राज्यों में फसल की स्थिति सामान्य से खराब तक रही.
मध्य प्रदेश में सोयाबीन का क्षेत्र 48.64 लाख हेक्टेयर रह गया, जो पिछले साल की तुलना में 6.4 फीसदी कम है. उत्पादन 44.55 लाख टन पर रह गया, जो 55.39 लाख टन की तुलना में 19.57 फीसदी कम है. औसत उपज 916 किलो प्रति हेक्टेयर रही, जो पिछले साल की तुलना में 149 किलो कम है.
महाराष्ट्र में हालांकि बोने का क्षेत्र 2 फीसदी बढ़कर 47.09 लाख हेक्टेयर हुआ, पर उत्पादन 46.74 लाख टन तक घट गया. औसत उपज 992 किलो प्रति हेक्टेयर रह गई. येलो मोजेक वायरस और अत्यधिक बारिश के कारण फसल का ग्रेन क्वालिटी प्रभावित हुआ.
राजस्थान में स्थिति और खराब रही हैं, इसका क्षेत्र घटकर 9.06 लाख हेक्टेयर रह गया और उत्पादन लगभग 5.66 लाख टन हुआ, जो पिछले साल के 10.5 लाख टन की तुलना में करीब 46 फीसदी कम है. औसत उपज केवल 625 किलो प्रति हेक्टेयर रही. कमजोर पौधों की वृद्धि और एरियल ब्लाइट के कारण दाने छोटे रहे और उपज में गिरावट आई.
फसल की गुणवत्ता पर असर
अत्यधिक बारिश और जलभराव के कारण बीज की गुणवत्ता प्रभावित हुई है. कम बारिश वाले क्षेत्रों में भी येलो मोजेक वायरस और एरियल ब्लाइट ने फसल को नुकसान पहुंचाया. SOPA ने कहा कि फसल की शुरुआती हफ्तों में नमी ज्यादा रहने की संभावना है, जिससे बीज भंडारण और प्रोसेसिंग पर असर पड़ सकता है.
कुल मिलाकर, भारत में इस साल सोयाबीन की फसल क्षेत्र और उपज दोनों में कमी के कारण कुल उत्पादन घट गया है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में रोग और खराब मौसम ने स्थिति को और जटिल बना दिया. जबकि महाराष्ट्र में क्षेत्र थोड़ा बढ़ा, उपज में गिरावट ने नुकसान को कम नहीं किया. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को बीज रोग प्रतिरोधी किस्मों और सही कृषि तकनीकों के उपयोग की जरूरत है, ताकि भविष्य में उत्पादन स्थिर और उच्च गुणवत्ता वाला रहे.