Kharif Pulses Prices: देशभर की मंडियों में खरीफ सीजन 2025-26 की प्रमुख दालें और तिलहन एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से 1,000 से 1,700 रुपये प्रति क्विंटल तक कम भाव में बिक रही हैं. मूंग, उड़द, तूर, मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलें किसानों की उम्मीदों के विपरीत कम कीमत पर बिक रही हैं. ताजा फसल की आवक शुरू हो चुकी है, लेकिन बाजार भाव लगातार गिर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अक्टूबर मध्य तक आपूर्ति बढ़ने के बावजूद भाव में सुधार नहीं हुआ, तो सरकार को प्राइस सपोर्ट स्कीम के तहत हस्तक्षेप करना पड़ सकता है.
दालों की हालत: MSP से कम कीमत
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इस साल मूंग की कीमत औसतन 7,220 रुपये प्रति क्विंटल रही, जबकि इसका MSP 8,768 रुपये तय किया गया है. उड़द औसतन 6,368 रुपये में बिकी, जबकि इसका MSP 7,800 रुपये है. तूर की औसत कीमत 6,222 रुपये रही, जो 8,000 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से काफी नीचे है. किसानों के लिए यह स्थिति खास तौर पर चिंताजनक है क्योंकि इन दालों पर उनकी लागत और उत्पादन खर्च काफी अधिक होता है.
तिलहन की स्थिति भी गंभीर
मूंगफली औसतन 5,682 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है, जबकि MSP 7,263 रुपये है. सोयाबीन की कीमत 4,252 रुपये पर पहुंच गई है, जो कि MSP 5,328 रुपये से बहुत कम है. विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन तिलहन उत्पादों के भाव में गिरावट के साथ-साथ आयात नीतियों का असर भी घरेलू बाजार पर पड़ा है. सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए इन उत्पादों के आयात पर कम या शून्य शुल्क की अनुमति दी है, जिससे व्यापारी विदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने लगे और देशी उत्पादन की मांग कम हो गई.
उत्पादन पर संकट और क्षेत्रफल में कमी
कृषि विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल तूर, मूंग, मोंठ और सोयाबीन का उत्पादन घट सकता है. कई राज्यों जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भारी बारिश और अप्रत्याशित मौसम ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, तूर की बुआई 45,000 हेक्टेयर कम हुई, मूंग 32,000 हेक्टेयर कम, मोंठ 40,000 हेक्टेयर कम और सोयाबीन 5.81 लाख हेक्टेयर कम रह गई. वहीं, उड़द का क्षेत्रफल 1.51 लाख हेक्टेयर और मूंगफली का 34,000 हेक्टेयर बढ़ा.
सरकार और राज्यों की भूमिका
हाल ही हुई रबी कॉन्फ्रेंस में कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने केंद्र सरकार से खरीफ दालों और तिलहन की तुरंत खरीद शुरू करने की मांग की. उन्होंने कहा कि किसी प्रकार की मात्रा सीमा न लगाई जाए, ताकि किसानों को बेहतर भाव मिल सके. केंद्र और राज्य सरकारों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि MSP से नीचे बिक रही फसलों का लाभ किसानों तक पहुंचे और उन्हें आर्थिक राहत मिले.
किसान परेशान, बाजार में तनाव
किसानों का कहना है कि इस स्थिति में उनकी आय पर सीधा असर पड़ेगा और उन्हें लागत भी पूरी तरह नहीं निकल पाएगी. वे सरकार से चाहते हैं कि प्राइस सपोर्ट स्कीम के तहत उन्हें उचित मूल्य दिलाया जाए. विशेषज्ञ भी सुझाव दे रहे हैं कि किसानों को फसल बेचने से पहले बाजार की जानकारी रखें और बड़े व्यापारियों पर निर्भर न रहें.
इस तरह, खरीफ की दालों और तिलहन की कीमतों में गिरावट ने न केवल किसानों को चिंतित किया है, बल्कि देश के कृषि बाजार में भी तनाव पैदा कर दिया है. अब यह देखना बाकी है कि सरकार और राज्य सरकारें कितनी तेजी से हस्तक्षेप करती हैं और किसानों को राहत पहुंचाती हैं.