Potato Farming: देशभर में किसान बड़े पैमाने पर आलू की खेती करते हैं. बाजार में भी आलू की भारी मांग रहती है. यही कारण है कि किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है. लेकिन इसकी खेती के दौरान कई बार कीट और रोग फसल को भारी नुकसान पहुंचा देते हैं. आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है ‘आलू कंद कीट’ (Potato Tuber Moth). बता दें कि ये कीट आलू के तनों, पत्तियों और कंदों में सुरंग बनाकर फसल को खराब कर देता है. ऐसे में अगर किसान समय रहते इन कीटों की पहचान और रोकथाम के लिए उपाय नहीं करते हैं तो न केवल फसल चौपट हो सकती है, बल्कि किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता.
इन लक्षणों से करें पहचान
आलू फसल में लगने वाला आलू कंद कीट एक छोटा पतंगा होता है, जिसकी लंबाई लगभग 10 से 12 मिलीमीटर होती है और देखने में इसके पंख भूरे रंग के होते हैं. इस कीट की पहचान है कि मादा कीट आलू की पत्तियों और तनों पर अंडे देती हैं और इन्हीं अंडों से निकलने वाला लार्वा पौधे के तनों और कंदों में सुरंग बनाते हुए जड़ों तक पहुंच जाता है. इस कीट की एक पहचान ये भी है कि संक्रमित पौधे की पत्तियां मुरझाने लगती हैं और आलू खराब होकर सड़ने लगते हैं और इस तरह पूरी फसल चौपट हो सकती है.
फसल को कैसे पहुंचाते हैं नुकसान
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आलू कंद कीट के चलते तनों में सुरंग और छेद दिखाई देते हैं. साथ ही पत्तियों पर सफेद धारियां और सूखने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं. इस कीट के संक्रमण से जमीन के नीचे मौजूद आलू के कंदों में छेद और सड़न शुरू हो जाती है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये कीट आलू के स्टोरेज के दौरान भी आक्रमण करते हैं और आलू को नुकसान पहुंचाते हैं.
बचाव के लिए करें ये उपाय
आलू की फसल को इस खतरनाक कीट से बचाने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे लगातार एक ही खेत में आलू की खेती करने से बचें और खेत में गिरे हुए आलू और खरपतवार को समय-समय पर हटाते रहें. बुवाई करते समय इस बात का खास खयाल रखें कि आलू की बुवाई 15 से 20 सेंटीमीटर गहराई पर करना चाहिए, ताकि कीट आसानी से कंद तक न पहुंच सकें. इसके साथ ही पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाकर कंदों को ढक दें. अगर फसल पर संक्रमण जरूरत से ज्यादा हो जाए तो किसान कार्बोफ्यूरान, क्लोरोपाइरीफॉस या सिफ्लुथ्रिन जैसे कीटनाशकों का भी छिड़काव कर सकते हैं.