भगवान बुद्ध से जुड़ी है 800 रुपये में बिकने वाले इस चावल की कहानी, आप भी जान लें

काला नमक चावल एक पारंपरिक और ऐतिहासिक चावल की किस्म है जो अपने स्वास्थ्य लाभ और उच्च मूल्य के लिए जानी जाती है.

Kisan India
नोएडा | Published: 27 Jul, 2025 | 07:45 PM

हम अक्सर चावल की नई किस्मों के बारे में सुनते रहते है, लेकिन क्या आपने कभी कालानामक (Kala Namak Rice) चावल का नाम सुना है. परंपरा और इतिहास से जुड़ा यह चावल ऐसी फसल हैं जो न सिर्फ अन्य किस्मों के मुकाबले बाजार में सबसे महंगी बिकती है बल्कि अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जानी जाती है. कहा जाता है की भगवान गौतम बुद्ध ने कपिलवस्तु में अपने शिष्यों को यह चावल खाने के लिए दिया था, जिस कारण कई लोग इसे बुद्ध का प्रसाद भी मानते हैं. वहीं यह चावल डायबिटीज के मरीजों के सेवन के लिए ठीक माना गया है.

400 से 800 रुपये कीमत

काले नमक चावल को लोग सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी चुनते हैं. इसमें एक प्राकृतिक सुगंध होती है, जो इसे बाकी चावलों से अलग बनाती है. इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स लगभग 49 से 52 प्रतिशत यानी बाकी किस्मों से कम होता है, जिससे डायबिटीज के मरीज भी इसे आसानी से खा सकते हैं. यही वजह है कि इसकी मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है. यह चावल बाजार में 400 से 800 रुपये प्रति किलो तक बिकता है, जो किसानों के लिए अच्छी आमदनी का मुनाफेदार विकल्प बन सकता है.

उत्तर प्रदेश में खूब होती है कालानमक चावल की खेती

काला नमक चावल की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र के साथ सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, महाराजगंज, बस्ती, गोंडा और गोरखपुर जैसे 11 जिलों में यह चावल पारंपरिक रूप से उगाया जाता है. इसके अलावा यह चावल नेपाल के कपिलवस्तु इलाके में भी लोकप्रिय है, जहां इसे ‘सुगंधित काले मोती’ के नाम से जाना जाता है.

काले नमक चावल की खेती कैसे करें

सबसे पहले बीज को 24 घंटे पानी में भिगो दें और ट्रे में 20 से 30 दिनों तक बीजों को अंकुरित होने के लिए छोड़ दें. जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं तो उन्हें बलुई दोमट या चिकनी मिट्टी वाले खेतों में ट्रांसफर कर दें. रोपाई करते समय पौधे से पौधे के बीच 15 सेंटीमीटर की दूरी रखें. इस चावल की खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता, जिससे यह पूरी तरह जैविक रहता है. जिसे किसानों की लागत भी कम होती है. पौधे को नियमित सिंचाई की जरूरत होती हैं. यह चावल अन्य किस्मों की तुलना में देर से यानी 150 से 160 दिनों में तैयार होती हैं.

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Published: 27 Jul, 2025 | 07:45 PM

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