कुंदरू की खेती किसानों के लिए एक शानदार विकल्प बनती जा रही है. यह सब्जी खीरे की प्रजाति की होती है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. कम मेहनत, आसान देखभाल और लगातार उत्पादन के कारण किसान लंबे समय तक मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं इस खेती के बारे में.
कुंदरू की खेती क्यों है फायदेमंद
कुंदरू की खेती उन किसानों के लिए खास है जो कम मेहनत में ज्यादा लाभ चाहते हैं. इस सब्जी का भाव बाजार में अधिकतर 40 से 50 रुपये प्रति किलो होता है. कुंदरू की फसल लंबे समय तक फल देती है, जिससे किसान सालों तक लगातार आमदनी कमा सकते हैं. कई किसान तरह-तरह की सब्जियां उगाते हैं, लेकिन कुंदरू की खेती कम ही लोग करते हैं. इसका मतलब यह है कि मार्केट में कुंदरू की मांग बनी रहती है, जबकि प्रतिस्पर्धा कम होती है. यही कारण है कि यह खेती आर्थिक रूप से फायदेमंद मानी जाती है.
मिट्टी और खेत की तैयारी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुंदरू की अच्छी पैदावार के लिए बलूई मिट्टी सबसे उपयुक्त है. खेत की अच्छी तरह से जुताई करना जरूरी है. इसके बाद खेत में गोबर, जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट डालें. इससे फसल की पैदावार बढ़ती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं. खेत में मेड़ बनाना भी जरूरी है. मेड़ बनाने से नाली के जरिए पानी सीधे जड़ों तक जाता है और पौधों के गलने या रोग लगने की संभावना कम हो जाती है. इसके अलावा खेत में नमी बनाए रखने के लिए सप्ताह में एक बार सिंचाई करनी चाहिए.
नर्सरी तैयार करना और रोपाई
कुंदरू की खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार करनी होती है. नर्सरी में बीज बोने के 25-30 दिनों बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. सही समय पर रोपाई करने से फसल जल्दी बढ़ती है और उत्पादन ज्यादा होता है. नर्सरी से तैयार पौधों को खेतों में रोपाई करना आसान है और इससे किसान लंबे समय तक लाभ कमा सकते हैं.
मचान विधि से खेती और पानी की बचत
कुंदरू की खेती में मचान विधि अपनाने से फायदा होता है. इस विधि में पौधों को मचान पर लगाया जाता है और नाली बनाकर पानी सीधे जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इससे पानी की बचत होती है और पौधों में रोग लगने की संभावना कम हो जाती है. मचान विधि से खेती करने पर उत्पादन भी बढ़ता है. किसान कम पानी और मेहनत में ज्यादा फसल उगा सकते हैं. यह तरीका खासतौर से छोटे और सीमित जमीन वाले किसानों के लिए फायदेमंद है.
उत्पादन और लगातार तुड़ाई
कुंदरू की खासियत यह है कि इसे किसान बार-बार तोड़ सकते हैं. फसल की पैदावार लगातार बनी रहती है. हर 8-9 दिन में नई सब्जी निकलने लगती है, जिससे किसान नियमित रूप से मुनाफा कमा सकते हैं. इसके अलावा, कुंदरू की फसल धीरे-धीरे बड़ती है और किसान को बार-बार मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती. इस तरह किसान कम समय और कम खर्च में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
आसान और लाभकारी सब्जी
कुंदरू की खेती शुरू करना बेहद आसान है. इसे कोई भी किसान कर सकता है, भले ही उसने पहले कभी खास खेती न की हो. पौधों की देखभाल सरल है और सिंचाई कम होती है. जैविक खाद और नमी का ध्यान रखकर किसान लंबे समय तक फसल उगा सकते हैं. मचान विधि अपनाने और सही समय पर रोपाई करने से उत्पादन बढ़ता है. कुंदरू की खेती छोटे और बड़े दोनों तरह के किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है.