पराली पर फिर छिड़ी बहस, सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी और राज्यों के एक्शन के बीच फंसे अन्नदाता, किसान नेताओं में गुस्सा

किसानों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और सुझाव के बाद अब राज्य सरकारें कार्रवाई का चाबुक लेकर उनके पीछे पड़ जाएंगी और किसानों को बेवजह परेशान किया जाएगा. किसानों का कहना है कि वे पराली प्रबंधन कैसे करें, कई हजार एकड़ में धान की पराली को वे कहां ले जाएं. इस बारे में सरकार व्यवस्था क्यों नहीं करती.

रिजवान नूर खान
नोएडा | Updated On: 19 Sep, 2025 | 08:08 PM

Stubble Burning Issue: दिल्ली को वायु प्रदूषण से गैस चैंबर बनने से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने (फसल अवशेष) पर रोकथाम के लिए पंजाब, हरियाणा सरकार पर सख्त टिप्पणी की है. पंजाब से पूछा है कि क्यों ऐसे किसानों को जेल नहीं भेजा जा रहा है, जिससे उनमें भय पैदा हो और वह पराली न जलाएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि किसान अन्नदाता हैं और महत्वपूर्ण हैं, उनका उगाया हम सब खाते हैं. लेकिन, इससे उन्हें पराली जलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. वहीं, पराली से जैव ईंधन, टाइल्स-ईटें समेत कई तरह की वस्तुएं बनाने के विकल्प होने का जिक्र भी किया.

किसानों के लिए इस सख्ती पर किसान संगठनों ने नाराजगी जताई है और कहा है कि सुप्रीमकोर्ट उनकी बात को भी सुने. सरकारों की जो जिम्मेदारी थी उसे पूरा नहीं कर पाने के लिए उनपर कब कार्रवाई की बात की जाएगी. किसान को बलि का बकरा बनाया जाता है और सरकारें उनके पीछे कार्रवाई का चाबुक लेकर पड़ जाती हैं. लेकिन, पराली का प्रबंधन के समुचित प्रयास नहीं किए जाते हैं. किसान नेताओं ने कहा कि किसानों के हक की बात की जाए और पराली प्रबंधन में उनकी मदद की जाए.

पराली जलाने वाले किसानों पर एक्शन के लिए क्या हैं नियम

पराली जलाने पर मध्य प्रदेश में 2500 रुपये से 15000 रुपये तक का जुर्माना किसानों पर लगाने का प्रावधान (Stubble Burning Rules) है और ऐसे लोगों को कई सरकारी योजनाओं से वंचित करने का भी नियम शामिल किया गया है. इसी तरह पंजाब, हरियाणा में रेड एंट्री रजिस्टर में किसानों का नाम दर्ज करने का प्रावधान है, इससे किसान मंडियों में अपनी उपज बेचने से वंचित हो जाते हैं. वहीं, खुले में पराली जलाना वायु (प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम) अधिनियम 1981 के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसी तरह यूपी समेत अन्य राज्यों में भी सख्त नियम हैं.

सरकार की ओर से बेवजह परेशान करने का डर किसानों को सता रहा

किसानों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और सुझाव के बाद अब राज्य सरकारें कार्रवाई का चाबुक लेकर उनके पीछे पड़ जाएंगी और किसानों को बेवजह परेशान किया जाएगा. किसानों का कहना है कि वे अपनी पराली का प्रबंधन (Stubble Management) कैसे करें, कई हजार एकड़ में धान की पराली को वे कहां ले जाएं, उसे कहां यूज करें या उसका क्या करें. उन्हें मालूम है कि खेत की मिट्टी खराब होती है, प्रदूषण फैलता है. लेकिन, हल नहीं मिलने पर वह मजबूरी में जलाते हैं. राज्य सरकारों ने पराली प्रबंधन के लिए मशीनों की व्यवस्था की है, लेकिन इन मशीनों की लागत करीब 10 लाख रुपये है. ऐसे किसानों का कहना है कि सब्सिडी के बाद भी मशीन खरीद पाना मुश्किल का काम है. इसके लिए राज्य सरकार उनकी मदद करें.

डल्लेवाल ने कोर्ट को उसके आदेश की याद दिलाई

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि प्रदूषण इंडस्ट्री कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्ट (Air Pollution) की वजह से होता है, जबकि पराली से केवल 5 फीसदी वायु प्रदूषण में योगदान करता है. लेकिन, इंडस्ट्री कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्ट से 55-60 फीसदी प्रदूषण फैलता है तो उनपर कार्रवाई करने की बजाय किसान के लिए सख्ती बरतना ठीक नहीं है. उन्होंने कोर्ट की एक अन्य टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट ने कहा था कि पराली का समाधान करने के लिए राज्य सरकार 100 रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन दे. लेकिन, अब तक सरकारों की ओर से इसका पालन नहीं किया गया है. तो कोर्ट इन सरकारों पर कार्रवाई क्यों नहीं करती है. उन्होंने कोर्ट से प्रार्थना करते हुए कहा कि किसान को ये सजा देना उचित नहीं है.

गुणी प्रकाश बोले- प्रबंधन इंतजाम नहीं करने वाली सरकारों पर एक्शन कब होगा

केंद्र सरकार की एमएसपी कमेटी के सदस्य और दिग्गज किसान नेता गुणी प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट ने किसान प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया और किसानों का कोई पक्ष नहीं सुना गया. उन्होंने कहा कि किसानों को पराली प्रबंधन के संसाधन उपलब्ध नहीं कराने पर सरकारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है. उन्होंने चिंता जताई कि अब राज्य सरकारें किसानों को योजनाओं का लाभ देने से वंचित कर सकती हैं. इसके साथ उपज खरीद समेत अन्य लाभों से वंचित किया जा सकता है.

खुद जिम्मेदार व्यवस्था नहीं कर पा रहे और किसानों पर दोष मढ़ा जा रहा – मनोज जागलान

भारतीय किसान यूनियन सिद्धपुर के हरियाणा प्रदेश प्रवक्ता मनोज जागलान ने भी उपाय ढूंढने या सही तरीके से लागू करने के किसानों पर सख्ती बरतने के मामले पर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि किसान धान की खेती क्यों ज्यादा कर रहा है इसका डाटा इकट्ठा किया जाए और दलहन-तिलहन का रकबा क्यों कम रह जाता है. उन्होंने कहा कि अमृतसर से चलकर पाकिस्तान न जाकर सीधा देश की राजधानी में पहुंच जाता है, इसकी भी जांच कराई जाए. आखिर कहां से इतना धुआं दिल्ली में पहुंचता है उसकी जांच कराकर स्पष्ट किया जाए. उन्होंने कहा कि पराली प्रबंधन के लिए बेलर व्यवस्था थी उसके जिम्मेदार किसानों तक बेलर भी उपलब्ध नहीं कराया गया, उसके बाद किसानों क्या करें. किसानों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है.

Published: 19 Sep, 2025 | 07:41 PM

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