Artificial Insemination : गांवों में अब सिर्फ खेती नहीं, बल्कि पशुपालन भी किसानों की आमदनी का बड़ा जरिया बन गया है. पहले जहां गाय-भैंस से दूध निकालना ही आम बात थी, अब नई तकनीकों ने इस व्यवसाय का चेहरा बदल दिया है. इन्हीं आधुनिक तरीकों में सबसे ज्यादा चर्चा में है- कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination). यह तकनीक न सिर्फ पशुओं की नस्ल में सुधार करती है बल्कि दूध उत्पादन भी बढ़ाती है.
क्या है कृत्रिम गर्भाधान? जानिए आसान भाषा में
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कई पशुपालक भाई यह सवाल पूछते हैं कि आखिर कृत्रिम गर्भाधान होता क्या है? दरअसल, यह एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है जिसमें नर पशु का वीर्य इकट्ठा कर उसे मादा पशु के गर्भाशय में डाला जाता है. इससे पशु प्राकृतिक तरीके से नहीं बल्कि तकनीकी मदद से गर्भवती होती है. इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा होते हैं, जो मजबूत और स्वस्थ होते हैं. साथ ही, यह तकनीक पशुधन की आनुवंशिक गुणवत्ता (Genetic Quality) में भी सुधार करती है.
बकरियों के लिए वरदान बनी एआई तकनीक
बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान (AI) तकनीक काफी उपयोगी साबित हो रही है. इससे बकरियों को एक साथ गर्भधारण करवाया जा सकता है, जिससे उनकी देखभाल करना आसान हो जाता है. एक साधारण बकरी लगभग 14 महीने में 35 से 40 किलो तक की होती है, लेकिन कई बार धीमी वृद्धि के कारण यह समय बढ़कर 16 महीने तक पहुंच जाता है. इस देरी से पशुपालकों को नुकसान होता है. कृत्रिम गर्भाधान से पैदा हुई बकरी तेजी से बढ़ती है, 1.5 लीटर तक दूध देती है और दूध में प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है. इससे पशुपालकों की आमदनी में अच्छी खासी बढ़ोतरी होती है.
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देसी गायों में आएगा जबरदस्त सुधार
देसी नस्ल की गायें जैसे- साहिवाल, थारपारकर, गिर और राठी- भारत की पहचान रही हैं. लेकिन समय के साथ इनकी संख्या और शुद्धता दोनों में कमी आई है. कृत्रिम गर्भाधान से अब इन नस्लों को फिर से मजबूत बनाने की कोशिश हो रही है. इस तकनीक से गायों में अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा होते हैं और उनका दूध उत्पादन भी बढ़ जाता है. एक सामान्य गाय जहां 6 से 7 माह तक दूध देती है, वहीं कृत्रिम गर्भाधान से तैयार गायें 11 महीने तक दूध देती हैं. इससे दूध उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी संभव है.
किसानों की कमाई में आएगा बड़ा उछाल
पशुपालन व्यवसाय पहले जहां छोटे स्तर पर किया जाता था, अब इसमें वैज्ञानिक तकनीकों के आने से मुनाफा कई गुना बढ़ गया है. कृत्रिम गर्भाधान से न सिर्फ दूध की मात्रा बढ़ती है बल्कि पशुओं की सेहत में भी सुधार होता है. सरकार भी इस दिशा में लगातार काम कर रही है. ग्रामीण इलाकों में पशुपालन प्रशिक्षण, एआई केंद्र और आर्थिक सहायता योजनाएं शुरू की गई हैं ताकि हर किसान इसका लाभ उठा सके. जिन पशुपालकों ने यह तकनीक अपनाई है, वे आज लखपति से करोड़पति तक बन चुके हैं.
सरकार की मदद से बढ़ेगा आत्मनिर्भर पशुपालन
भारत सरकार ने पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे- राष्ट्रीय गोकुल मिशन, पशुधन विकास योजना और रूरल एंटरप्रेन्योर सपोर्ट प्रोग्राम. इन योजनाओं के तहत किसानों को कृत्रिम गर्भाधान पर सब्सिडी और प्रशिक्षण दोनों मिलते हैं. इसका लक्ष्य है कि हर गांव में स्वस्थ और उत्पादक पशुधन तैयार हो सके. इससे न केवल दूध उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि आवारा पशुओं की संख्या में भी कमी आएगी.