ठंड बढ़ते ही मवेशियों में FMD का खतरा बढ़ा, ये लक्षण दिखें तो तुरंत हो जाएं सावधान

सर्दियों में मवेशियों के बीच FMD बीमारी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. बदलते मौसम में कई पशुओं में बुखार, छाले और दूध कम होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं. समय पर पहचान और देखभाल से नुकसान रोका जा सकता है. सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 19 Nov, 2025 | 10:44 PM

FMD Disease: जैसे ही ठंड अपनी चाल तेज करती है, वैसे ही खेत-खलिहानों में एक अनदेखा डर भी बढ़ने लगता है. वो डर है मवेशियों में बढ़ती बीमारियों का. सुबह की ठंडी हवाएं और दिन में बदलते मौसम का मिजाज कई बार पशुओं के लिए बड़ा जोखिम बन जाते हैं. ठंड में खुरपकामुंहपका (FMD) बीमारी फिर से तेजी पकड़ने लगी है, जो गाय, भैंस, बकरी और सूअर जैसे दो-खुर वाले जानवरों में सबसे ज्यादा फैलती है. यह संक्रमण गुपचुप तरीके से एक पशु से दूसरे तक पहुंचता है और अक्सर तब तक पकड़ में नहीं आता जब तक हालत गंभीर न हो जाए. इसलिए पशुपालकों को इस मौसम में खास सावधानी बरतने की जरूरत है.

बदलता मौसम बढ़ा रहा खतरा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मौसम में अचानक बदलाव  इस बीमारी को सबसे ज्यादा सक्रिय कर देता है. हाल की बारिश और दिन में बढ़ती गर्मी से हवा में नमी बढ़ जाती है, जो इस वायरस के फैलने के लिए अनुकूल माहौल बनाती है. FMD की शुरुआत अक्सर मुंह में छोटे-छोटे छालों से होती हैजैसे जीभ, दांतों के पास और अंदरूनी हिस्सों में. पैरों के खुरों के बीच और किनारों पर फफोले पड़ने लगते हैं, जिससे जानवर दर्द में रहने लगता है. कई बार स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि पूरा खुर निकल जाता है और ठीक होने में महीनों लग जाते हैं.

ठंड में दिखें ये लक्षण तो तुरंत समझें खतरा

सर्दी का मौसम FMD के लिए सबसे संवेदनशील माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इस दौरान अगर आपके मवेशियों में ये पाँच लक्षण दिखें, तो तुरंत सतर्क हो जाएं

  1. बहुत तेज बुखार
  2. लंगड़ाकर चलना या उठने-बैठने में परेशानी
  3. मुंह से लगातार लार गिरना
  4. मुंह और खुरों के पास छाले या फफोले
  5. दूध उत्पादन में 8090 फीसदी तक की गिरावट
  6. ये लक्षण बीमारी के शुरुआती संकेत माने जाते हैं और समय रहते इलाज न मिल पाए तो पूरा पशु समूह प्रभावित हो सकता है.

एक से पूरी डेयरी में फैल जाता है संक्रमण

यह बीमारी भले जानलेवा कम हो, लेकिन फैलती बहुत तेजी से है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक संक्रमित पशु  अगर दूसरों के संपर्क में आए तो देखते ही देखते पूरी डेयरी में संक्रमण फैल सकता है. इसके पीछे वजह हैवायरस का बेहद संक्रामक होना. संक्रमित पशु की लार, चारे पर पड़ा थूक, जमीन, बर्तन, पानी की टंकी, सब वायरस फैला सकते हैं. इसलिए एक बीमार पशु  को तुरंत अलग रखना बेहद जरूरी है.

सरकार का मुफ्त टीकाकरण कार्यक्रम है बड़ी राहत

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार ने इस बीमारी को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुफ्त वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू किया है. हर छह महीने में गांवों और डेयरियों में कैम्प लगाकर FMD का निशुल्क टीका  लगाया जाता है ताकि पशुओं को पहले से सुरक्षा मिल सके. पशुपालकों को सलाह दी गई है कि वे टीकाकरण का समय बिल्कुल न चूकें. टीका लगने से न केवल संक्रमण का खतरा कम होता है, बल्कि बीमारी फैलने की संभावना भी काफी घट जाती है.

देसी उपचार भी दे रहे राहत

अच्छी बात यह है कि FMD में कुछ देसी उपाय भी कारगर साबित हो रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार

  • तेज बुखार होने पर 45 दिन तक बुखार की सामान्य दवा दी जा सकती है.
  • पैरों में छाले होने पर पशु को कच्ची मिट्टी या हल्के कीचड़ पर चलाना चाहिए, जिससे खुर पर दबाव कम पड़े.
  • मुंह के छालों में दिन में दो बार ग्लिसरीन या मीठा तेल (सरसों, अलसी) लगाने से आराम मिलता है.
  • भोजन में नरम चीजें जैसे दलिया, चोकर, गीला भूसा आदि देना चाहिए ताकि उन्हें खाने में परेशानी न हो.
  • ये उपाय दर्द कम करते हैं और पशु की सेहत तेजी से सुधरती है.

नीम और हल्दी है सबसे असरदार संयोजन

घावों की सफाई में नीम का गर्म पानी सबसे प्रभावी माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दिन में दो-तीन बार नीम के पत्तों से उबाले गए गर्म पानी से छालों को साफ करना चाहिए. इसके बाद हल्दी मिले तेल को लगाने से घाव जल्दी सूखते हैं और संक्रमण का खतरा  काफी कम हो जाता है. नीम में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जबकि हल्दी घाव भरने में मदद करती है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.

Side Banner

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.