सितंबर का महीना पशुओं के लिहाज से बेहद ही संवेदनशील होता है. इस दौरान मौसम में नमी ज्यादा होती और तापमान में उतार-चढ़ाव लगातार बना रहता है, जो कि पशुओं की सेहत पर सीधे बुरा असर डालता है. अगर इस मौसम में पशुओं की खास देखभाल न की जाए तो वे कई तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं. इसके साछ ही उनके काम करने की क्षमता और दूध उत्पादन में भी कमी आने लगती है. ऐसे में बिहार पशु निदेशालय एवं मत्स्य विभाग ने पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिसका पालन कर पशुओं को सुरक्षित रखा जा सकता है.
रात की ठंड से करें बचाव
सितंबर के महीने में दिन गरम होते हैं वहीं रात ठंडी होती है. ऐसे मौसम में बेहद जरूरी है कि पशुओं को रात में पड़ने वाली ठंड से बचाया जाए. पशुपालकों को ये सलाह दी जाती है कि वे पशुओं को ठंड से बचाने के लिए उन्हें किसी छप्पर आदि के नीचे बांध कर रखें. इसके साथ ही पशुशाला की अच्छे से जांच कर लें कि दीवार या छत से पानी न टपके और जमीन को बिल्कुल साफ और सूखा रखें. जरूरत हो तो पशुशाला की खिड़की-दरवाजें बंद रखें, केवल हवा के आने-जाने भर का सुराख छोड़ें. अगर पशुशाला में पानी भर जाता है तो पानी को निकालने के इंतजाम पहले से ही करके रखें.
मच्छर और कीटों से सुरक्षा
बिहार पशु निदेशालय द्वारा सोशल मीडिया पर जारी की गई एडवाइजरी के अनुसार, इस महीने में मौसम नमी भरा रहता है जिसके कारण मच्छर, मक्खी और अन्य कीटों की संख्या बढ़ जाती है. बता दें कि, ये कीट पशुओं को काटकर उन्हें संक्रमित कर सकते हैं. साथ ही मच्छर-मक्खियों के कारण थाइलेरिया, ट्रिपैनोसोमा, बबेसिया जैसे रोग पनपते हैं, जो कि पशुओं के लिए घातक साबित होते हैं और लम्पी स्किन डिजीज जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. इन कीटों से पशुओं को बचाने के लिए पशुशाला या बाड़े के आस-पास गंदा पानी न जमा होने दें. इसके अलावा पशुशाला को साफ रखें और पशुओं को नियमित रूप से नहलाएं-धुलाएं. पशुपालक चाहें तो नीम की पत्तियों के धुएं का इस्तेमाल कर सकते हैं, ये मच्छर-मक्खी आदि को भगाने में मदद करता है.
समय पर कराएं टीकाकरण
गर्मी और नमी के कारण तापमान में आने वाले उतार-चढ़ाव से कई फफूंद जनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इन रोगों में मुख्य रूप से कोलीबेसिलोसिस, साल्मोनेलोसिस जैसे रोग शामिल हैं. इसके अलावा गलाघोंटू (एच.एस.) और लंगड़ी बुखार (बी.क्यू.) के फैलने की संभावना भी ज्यादा रहती है. ऐसे में पशुपालकों को यही सलाह दी जाती है कि वे इनमें से किसी भी रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें. साथ ही समय रहते इन बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी टीकाकरण करा लें.
हरे चारे के साथ मिलाएं सूखा चारा
नमी के दिनों में चारे को स्टोर करते समय भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. नमी के कारण चारे में कई फंफूद जनित रोगों के संक्रमण का खतरा रहता है. इसलिए ये लाह दी जाती है कि हरे चारे से साईलेज बनाएं और हरे चारे के साथ सूखे चारें को मिलाकर ही पशुओं को खिलाएं. बता दें कि, जरूरत से ज्यादा हरा चारा खिलाने पर पशुओं को दस्त की समस्या हो सकती है.