Mustard Crop : ठंड का मौसम शुरू होते ही खेतों में पीली सरसों की लहरें हर किसी को खुश कर देती हैं. गांवों में चारों तरफ सरसों की खुशबू फैलने लगी है और किसान अच्छी पैदावार की उम्मीद में बेहद उत्साहित हैं. लेकिन इसी खुशहाली के बीच सरसों पर अचानक बीमारी का हमला किसानों की चिंता बढ़ा रहा है. कई इलाकों में सरसों के पौधे काले पड़ने लगे हैं, जड़ें सड़ रही हैं और कुछ जगहों पर फसल फूल आने से पहले ही सूखने लगी है. हालात ने किसानों को परेशान कर दिया है और सभी इस बीमारी के कारण और बचाव को लेकर जवाब तलाश रहे हैं.
क्यों बिगड़ रही है फसल की हालत?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, खेतों में सबसे ज्यादा समस्या जड़ गलन, उखेड़ा और फुलिया जैसी बीमारियों की देखी जा रही है. शुरू-शुरू में पौधा सामान्य लगता है, लेकिन कुछ दिनों बाद उसकी जड़ें सड़ने लगती हैं. पौधे का रंग फीका पड़ता है, पत्तियां झूल जाती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखने लगता है. किसान बताते हैं कि दिसंबर में जैसे ही फसल पर फूल बनना शुरू होता है, बीमारी का असर सबसे ज्यादा दिखता है. एक और बड़ी परेशानी उखेड़ा रोग है, जिसमें पौधा अचानक जमीन से उखड़ने लगता है. किसान महीनों की मेहनत बर्बाद होते देख बेचैन हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, मौसम में बढ़ती नमी और तापमान के उतार-चढ़ाव के कारण फंगल बीमारियां ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं और वही फसल को नुकसान पहुंचा रही हैं.
समाधान क्या है? सल्फर और फफूंदनाशक बने जरूरी हथियार
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि सरसों के फूल आने के समय पौधे को सल्फर की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. बुवाई के लगभग 35 से 45 दिन बाद प्रति एकड़ 500 ग्राम सल्फर का स्प्रे करना फसल के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. यह पौधे को पोषण देता है और बीमारी फैलाने वाले कीट-फफूंद से भी बचाता है. जहां फसल में सफेद रतुआ, जड़ गलन या झुलसा रोग दिखाई देता है, वहां फफूंदनाशक का उपयोग सही समाधान माना जाता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, किसान अपनी फसल में किसी भी असामान्य लक्षण को हल्का न लें और तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेकर दवा का छिड़काव करें.
गड़ मेथड की सिंचाई से बढ़ता है उत्पादन
हाल के दिनों में सरसों की खेती में गड़ मेथड सिंचाई तेजी से लोकप्रिय हुई है. इस विधि में खेत को 4 से 6 मीटर की चौड़ी पट्टियों में बांटा जाता है और इन्हीं पट्टियों में पानी दिया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह तरीका पानी की बचत करता है, मिट्टी में नमी बराबर बनाए रखता है और फसल को सड़ने से बचाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि बुवाई के 35-45 दिन के बीच की गई सिंचाई सरसों को नई ऊर्जा देती है और उत्पादन पर अच्छा प्रभाव डालती है. यही कारण है कि किसान इस तकनीक को तेजी से अपना रहे हैं.