अंडा और मांस से करें बंपर कमाई, इन नस्ल की मुर्गियों के पालन से बदल जाएगी किस्मत

ग्रामीण क्षेत्र में देसी मुर्गा पालन रोजगार और आय का बढ़ता स्रोत बन रहा है. खासकर कड़कनाथ और असिल नस्ल से अंडा और मांस दोनों की मांग अधिक है. किसानों के लिए यह व्यवसाय कम निवेश में ज्यादा मुनाफा देने वाला साबित हो रहा है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 20 Sep, 2025 | 09:00 PM

ग्रामीण इलाकों में अब ब्रायलर मुर्गी से ज्यादा देसी नस्ल की मुर्गियों की मांग बढ़ रही है. देसी मुर्गियों में रोगों से लड़ने की ताकत होती है और इनका मांस भी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. बाजार में इनकी कीमत ब्रायलर से कहीं ज्यादा मिलती है. यही वजह है कि असिल, कड़कनाथ और अन्य देसी नस्लों की मुर्गियां अब किसानों की पहली पसंद बन रही हैं. असिल और लेयर नस्ल की मुर्गियां साल में करीब 250 से 300 अंडे देती हैं. वहीं कड़कनाथ और सामान्य देसी मुर्गियां 150 से 200 अंडे तक देती हैं. अंडों की गुणवत्ता और पोषण मूल्य अधिक होने की वजह से बाजार में इनकी कीमत भी अच्छी मिलती है.

कड़कनाथ: काले मांस की सोने जैसी कीमत

कड़कनाथ मुर्गा इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में है. इसका काला मांस न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद माना जाता है. यही वजह है कि इसका मांस बाजार में 800 से 1000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. कड़कनाथ के अंडे भी आम अंडों से महंगे बिकते हैं-एक अंडा 15 से 20 रुपये तक में बिक जाता है. यह नस्ल धीरे-धीरे मध्यप्रदेश, खासकर विंध्य क्षेत्र के किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय हो रही है. इसकी मांग सिर्फ स्थानीय बाजार में ही नहीं, बड़े शहरों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी बनी हुई है.

लेयर और ब्रायलर से अलग है देसी फार्मिंग

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुर्गियों की दो मुख्य कैटेगरी होती हैं-ब्रायलर (मांस के लिए) और लेयर (अंडे के लिए). हालांकि इन दोनों के मुकाबले देसी नस्लों की खेती ज्यादा टिकाऊ और मुनाफेदार साबित हो रही है. सतना जिले में अभी लेयर फार्मिंग बहुत ज्यादा नहीं हो रही है, लेकिन जबलपुर और इंदौर जैसे शहरों में बड़े स्तर पर इसका उत्पादन हो रहा है. ऐसे में सतना और आसपास के किसान अगर इस दिशा में कदम बढ़ाएं, तो बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होने के कारण अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

कम लागत, ज्यादा मुनाफा-कैसे करें शुरुआत

देसी मुर्गा पालन की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे कम पूंजी में शुरू किया जा सकता है. शुरुआत में किसान 50 से 100 चूजों के साथ भी काम शुरू कर सकते हैं.
मुर्गियों के लिए ज्यादा महंगे शेड की जरूरत नहीं होती. थोड़ी-सी जगह और सही देखभाल से इन्हें पाला जा सकता है. चूजों की सही समय पर दवाई और टीकाकरण से रोगों से बचाव होता है. घर का बचा-खुचा खाना, चावल, अनाज वगैरह से इन्हें खिलाया जा सकता है, जिससे खर्च भी कम होता है.

रोजगार और आत्मनिर्भरता का नया रास्ता

आज जब रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं, ऐसे समय में देसी मुर्गा पालन ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार का शानदार विकल्प बनकर उभरा है. इस व्यवसाय में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और परिवार की आमदनी में सहयोग दे रही हैं. सरकार की कई योजनाएं भी मुर्गी पालन को बढ़ावा देती हैं, जिससे लोन, प्रशिक्षण और सब्सिडी में मदद मिलती है.

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Published: 20 Sep, 2025 | 09:00 PM

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