आज के समय में देशभर के किसान नई-नई तकनीकों को अपनाकर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने की कोशिश कर रहे हैं. बढ़ती चुनौतियों और महंगे संसाधनों के बीच किसानों को ऐसे विकल्प चाहिए होते हैं, जो मेहनत कम करें और फायदा बड़ा दें. इसी तलाश में एक तरीका तेजी से लोकप्रिय हो रहा है-मछली पालन और बत्तख पालन का संयुक्त मॉडल. यह मॉडल न सिर्फ कम खर्च में शुरू किया जा सकता है, बल्कि इससे आमदनी तीन गुना तक बढ़ने की संभावना भी जताई जा रही है. किसानों के बीच इस मॉडल को लेकर काफी उत्साह है क्योंकि इसमें प्रकृति खुद किसान का हाथ पकड़कर मदद करती है. आइए जानते हैं कि आखिर यह तरीका इतना खास क्यों है और किसान इससे कैसे भारी मुनाफा कमा रहे हैं.
मछलियों के साथ बत्तख पालना क्यों बना किसानों का नया हथियार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मछली पालन किसानों के लिए हमेशा ही एक भरोसेमंद व्यवसाय रहा है, लेकिन इसके साथ जब बत्तख पालन जोड़ दिया जाता है, तो यह मॉडल और अधिक शक्तिशाली बन जाता है. बत्तख और मछलियाँ दोनों एक-दूसरे के पूरक की तरह काम करती हैं. बत्तख तालाब में लगातार तैरती रहती हैं, जिससे पानी का हलचल बना रहता है और ऑक्सीजन का स्तर प्राकृतिक रूप से संतुलित रहता है. मछलियों को भी साफ और ऑक्सीजन से भरपूर पानी मिलता है, जिससे उनकी ग्रोथ तेजी से होती है. इसके अलावा बत्तख तालाब के ऊपर तैरते हुए कीड़े-मकोड़े और छोटे जीव खाती रहती हैं, जो तालाब को साफ रखने में मदद करता है. यही वजह है कि किसान अब इन दोनों का संयुक्त पालन करके अच्छा-खासा लाभ कमा रहे हैं.
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खर्च में 60 प्रतिशत की कमी
मछली पालन में सबसे बड़ी समस्या तालाब की गंदगी है. जैसे ही मछलियों को फीड दिया जाता है, तालाब का पानी धीरे-धीरे गंदा होने लगता है और उसमें ऑक्सीजन की कमी भी पड़ जाती है. जिस कारण किसानों को ऑक्सीजन मशीनें चलानी पड़ती हैं और तालाब की साफ-सफाई पर भी काफी खर्च होता है. लेकिन जब तालाब में बत्तख हों, तो यह मेहनत और खर्च दोनों काफी कम हो जाते हैं. बत्तख तालाब की गंदगी, शैवाल, कीड़े, काई और दूसरे जैविक पदार्थों को खाने का काम कर देती हैं. इससे तालाब स्वच्छ रहता है और ऑक्सीजन का स्तर भी सही बना रहता है. इतना ही नहीं, बत्तख का मल भी मछलियों के लिए प्राकृतिक खाद का काम करता है, जिससे फीडिंग का खर्च भी काफी कम हो जाता है. कुल मिलाकर किसान लगभग 60 प्रतिशत खर्च कम कर लेते हैं और फायदा कई गुना बढ़ जाता है.
स्पॉन तालाब में डालना होगा बंद
इस मॉडल को अपनाने से पहले किसानों को एक जरूरी सावधानी का पालन करना बेहद जरूरी है. तालाब में स्पॉन यानी बहुत छोटी मछलियां नहीं डालनी चाहिए, क्योंकि बत्तख इन्हें आसानी से खा जाती हैं. इस समस्या का समाधान यह है कि किसान तालाब में स्पॉन की जगह फिंगरलिंग डालें, यानी थोड़ी बड़ी मछलियां. इसके साथ ही तालाब में अलग-अलग प्रजातियों की मछलियां डालने से भी फायदा बढ़ जाता है. हर प्रजाति तालाब के अलग-अलग स्तर पर भोजन खोजती है, जिससे तालाब का पूरा स्पेस उपयोग होता है और किसानों को ज्यादा उत्पादन मिलता है. अगर ये दो बातें ध्यान में रखी जाएँ, तो मॉडल पूरी तरह सफल रहता है.
बत्तख का भोजन आसान, अंडे भी देते हैं अलग से कमाई
बत्तख पालन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें खिलाने का खर्च बहुत कम आता है. बत्तख बरसीम, हरी घास, धान का भूसा, जई, सब्जियों का छिलका और बाजार की हल्की फीड खाकर ही आसानी से पल जाती हैं. बत्तख तालाब से आधा से ज्यादा भोजन खुद खोज लेती हैं, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता. खास बात यह है कि बत्तख चार से साढ़े चार महीने में अंडे देने लगती है. इससे किसानों को दूसरा स्रोत भी मिल जाता है-यानी मछली के साथ-साथ अंडों की बिक्री से भी कमाई. ग्रामीण इलाकों में बत्तख के अंडों की अच्छी मांग होती है, जिससे किसान को हर महीने अलग से कमाई हो जाती है.
एक एकड़ तालाब में 6 लाख तक की कमाई
इस संयुक्त मॉडल को अपनाने वाले किसान बताते हैं कि एक एकड़ के तालाब से 20 से 25 क्विंटल तक मछलियों का उत्पादन आसानी से निकल आता है. छह से नौ महीने के भीतर मछलियों का वजन 1 से 1.5 किलो तक हो जाता है, जो मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकती हैं. किसान एक सीजन में ही 5 से 6 लाख रुपये कमा लेते हैं. इसके अलावा बत्तखों के अंडे, उनका गोबर और समय–समय पर बत्तखों की बिक्री भी अतिरिक्त इनकम देती है. यही कारण है कि यह मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और किसान इसे बड़े स्तर पर अपनाने लगे हैं.