Animal Health Care : मध्य प्रदेश में पशुपालन सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की रोजी-रोटी है. गांवों में गाय, भैंस और बकरी ही किसानों की सबसे बड़ी पूंजी मानी जाती हैं. लेकिन जब यही पशु बीमार पड़ जाते हैं, तो सबसे पहले असर दूध उत्पादन और आमदनी पर दिखता है. खासतौर पर सर्दियों के मौसम में पशुओं के पेट में कीड़े पड़ने की समस्या तेजी से बढ़ जाती है. पेट के कीड़े पशुओं को अंदर से कमजोर कर देते हैं, जिससे दूध आधा तक रह जाता है. अच्छी बात यह है कि कुछ आसान देसी उपाय अपनाकर इस नुकसान से बचा जा सकता है.
पेट के कीड़े कैसे बनते हैं बड़ी परेशानी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पशुओं के पेट में कीड़े पड़ने से उनका पाचन खराब हो जाता है. वे ठीक से चारा नहीं पचा पाते, जिससे शरीर कमजोर होने लगता है. धीरे-धीरे पशु सुस्त हो जाते हैं, वजन घटता है और दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन तेजी से कम होने लगता है. कई बार पशुपालक इस समस्या को समय पर नहीं समझ पाते, जिससे नुकसान बढ़ जाता है.
देसी नुस्खे जो पेट के कीड़ों को करें खत्म
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि नीम पेट के कीड़ों का सबसे असरदार घरेलू इलाज माना जाता है. नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर ठंडा करके पशुओं को पिलाने से पेट के कीड़े खत्म हो सकते हैं. चाहें तो नीम की ताजी पत्तियां चारे के साथ भी खिलाई जा सकती हैं. इससे पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है और पाचन बेहतर रहता है. यह उपाय सस्ता भी है और आसानी से हर गांव में मिल जाता है.
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पेट दर्द, दस्त और अफरा में घरेलू इलाज
अगर पशु को पेट दर्द, गैस या अफरा की समस्या हो, तो अजवाइन और सेंधा नमक को गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाना फायदेमंद माना जाता है. इससे पेट हल्का होता है और दर्द में आराम मिलता है. दस्त की स्थिति में छाछ में काला नमक और जीरा पाउडर मिलाकर देना या केले के तने का रस पिलाना भी लाभकारी बताया जाता है. इन उपायों से पशु जल्दी संभलने लगता है.
सर्दियों में ज्यादा खतरा, इन बातों का रखें ध्यान
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सर्दियों में ओस वाली घास पर कीड़ों के लार्वा ज्यादा पनपते हैं. इसलिए सुबह धूप निकलने से पहले पशुओं को चराने न भेजें. पेट में कीड़ों के लक्षणों में मिट्टी खाना, बदबूदार मटमैला दस्त, आंखों से पानी आना, स्किन का खुरदरा होना और दूध का अचानक कम होना शामिल है. मानसून के बाद नियमित डीवर्मिंग और सही देखभाल से इस समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है. थोड़ी सी समझदारी और देसी उपाय अपनाकर पशुपालक अपने पशुओं को स्वस्थ रख सकते हैं और नुकसान से बच सकते हैं.