कहते हैं अगर महिलाओं को थोड़ा सा साथ और समर्थन मिल जाए तो उनमें इतना हौसला होता है कि वे अपने जीवन को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखती हैं. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मध्य प्रदेश के एक गांव में रहने वाली साधारण सी महिला ने, जिसने अपनी मेहनत से न केवल खुद का जीवन बदला बल्कि दूसरी महिलाओं को भी अपने साथछ जोड़कर उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के महेश्वर की रहने वाली हेमलता खराड़े ने हैंडलूम की ट्रेनिंग लेकर अपना खुद का व्यवसाय शुरु किया जिससे उन्हें सालाना 2.5 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है. बता दें कि हेमलता की इस कामयाबी में उनका साथ सरकार द्वारा चलाए जा रहे आजीविका मिशन और हथकरघा विकास निगम ने दिया.
2012 में शुरु किया खुद का हथकरघा समूह
कभी मजदूरी करके 800 रुपये कमाने वाली हेमलता आज लाखों में कमाई कर रही हैं. हेमलता बताती हैं कि उनके जीवन में इस बदलाव का कारण है सरकार द्वारा चलाया जा रहा आजीविका मिशन. साथ ही उन्होंने बताया कि हथकरघा विकास निगम की मदद से साल 2008 में उन्होंने हैंडलूम के काम की 6 महीने की ट्रेनिंग ली, जिसमें उन्होंने हाथ से कारीगरी का सारा काम सीखा. ट्रेनिंग लेने के बाद हेमलता ने हथकरघा भवनों में काम किया औल साल 2012 में अपने कौशल से पहचान बनाते हुए उन्होंने खुद का हथकरघा समूह शुरू किया. बता दें कि सरकार ने हेमलता के आत्मविश्वास और काम को देखते हुए साल 2016 में भवन भी उपलब्ध कराया.
पारंपरिक माहेश्वरी साड़ियों से बनी पहचान
मध्य प्रदेश कृषि विभाग के अनुसार, हेमलता ने महेश्वर की पारंपरिक माहेश्वरी साड़ियों को अपनी कला से नई पहचान दी है. खास बात ये है कि उनकी कला केवल मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के कई अलग-अलग शहरों में भी हेमलता हैंडलूम एग्जीबिशनों में हिस्सा लेती हैं. इन शहरों में मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़, गुवाहाटी, इंदौर और भोपाल आदि शामिल हैं. बता दें कि, अपने हैंजलूम के काम से हेमलता महीने में करीब 25 हजार रुपये और सालाना 2.5 लाख रुपये तक कमा लेती हैं. इतना ही नहीं हेमलता खुद के साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहीं हैं. उन्होंने अपने साथ 15 और महिलाओं को जोड़कर उन्हें भी रोजगार दिया है.
साड़ी पर उकेरी नर्मदा की लहरें
हेमलता बताती हैं कि उनके स्व-सहायता समूह में तैयार साड़ियों में महेश्वर किले की झलक, झरोखा बूंटी, जाली बूटी, कैरी बूटी, असरफी बूटी जैसे पारंपरिक डिजाइन बुनी जाती हैं. खास बात यह है कि वे नर्मदा नदी की लहरों को भी साड़ियों की बॉर्डर में सजाकर उसकी प्राकृतिक छटा को परिधानों में पिरोती हैं. उनकी साड़ियाँ तीज-त्योहारों से लेकर शादी-ब्याह तक हर अवसर पर खूब पसंद की जाती हैं. संघर्ष से सफलता की इस यात्रा में हेमलता ने साबित कर दिया कि अवसर, मेहनत और सही मार्गदर्शन मिल जाए तो कोई भी महिला अपनी पहचान खुद बना सकती है. आज हेमतला अपनी जैसी तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बन गई हैं.