Success Story: कचरे में छिपा सोना! लंदन की नौकरी छोड़ शुभम ने पराली से बनाया करोड़ों का बिजनेस

लंदन की नौकरी छोड़कर ग्वालियर लौटे शुभम सिंह ने पराली से ऐसा स्टार्टअप शुरू किया जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक दी. पराली से प्रोडक्ट बनाकर उन्होंने किसानों को नई पहचान दी और देशभर में अपने सामान की बढ़ती मांग से सफलता की नई मिसाल कायम की. आइए जानते हैं शुभम सिंह सिंह के बारे में और वे पराली से क्या बनाते हैं...

Kisan India
नोएडा | Updated On: 11 Nov, 2025 | 08:29 PM

Paddy Straw Business: कहते हैं, अगर जज्बा हो तो मिट्टी भी सोना उगलती है. लंदन की आलीशान जिंदगी छोड़कर अपने गांव लौटे एक युवा ने यह साबित कर दिखाया है. जहां लोग पराली को बेकार मानते थे, वहीं इस युवक ने उसी से रोजगार और पर्यावरण दोनों को नया जीवन दे दिया. यह कहानी है शुभम सिंह की है, जिन्होंने पराली से बना डाला ऐसा स्टार्टअप, जो आज देशभर में चर्चा का विषय बन गया है.

पराली से शुरू हुई नई सोच, गांव में बदली किस्मत

लंदन से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद शुभम सिंह ने कुछ साल नौकरी की, लेकिन उनका मन कॉर्पोरेट दुनिया में नहीं लगा. उन्होंने सोचा- क्यों न अपनी मिट्टी के लिए कुछ किया जाए? यही सोच उन्हें वापस अपने ग्वालियर के गांव ले आई. गांव लौटकर उन्होंने देखा कि किसान फसल कटाई  के बाद पराली को जला देते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है. शुभम को यहीं से एक नया आइडिया आया- क्यों न इस पराली को बेकार समझने की बजाय काम की चीज बनाया जाए? उन्होंने किसानों से सीधे पराली खरीदनी  शुरू की और अपनी कंपनी क्रास्टे (Craste) की नींव रखी.

Shubham Singh

शुभम सिंह.

पराली से बने इको-फ्रेंडली सामान

कंपनी ने पराली से ऐसे उपयोगी प्रोडक्ट बनाना  शुरू किया जो न केवल पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, बल्कि प्लास्टिक का विकल्प भी हैं. आज शुभम और उनकी टीम पराली से खाने-पीने की प्लेट, पेपर, डायरी, पैकिंग शीट और यहां तक कि प्लाई बोर्ड भी बना रही है. इन प्रोडक्ट्स की खास बात यह है कि इनमें कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता. कंपनी की को-फाउंडर डॉ. हिमांशा सिंह बताती हैं कि मार्केट में बिकने वाले कई बोर्ड में कैंसर पैदा करने वाले केमिकल पाए जाते हैं, जबकि क्रास्टे के बोर्ड पूरी तरह प्राकृतिक हैं. आज उनके बनाए उत्पादों की डिमांड न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि देशभर में बढ़ रही है.

किसानों के लिए भी बनी कमाई का जरिया

शुभम ने सिर्फ खुद की सफलता नहीं सोची, बल्कि किसानों को भी इस सफर में जोड़ा. उन्होंने किसानों को समझाया कि पराली जलाना पर्यावरण को नुकसान  पहुंचाता है और साथ ही उनकी कमाई का मौका भी खो देता है. अब उनकी कंपनी सीधे किसानों के घर जाकर पराली खरीदती है. सभी फसलों की पराली अलग-अलग दाम अलग-अलग होती हैं. गेहूं की पराली 5 रुपये से 6 रुपये प्रति किलो, धान और सरसों की पराली 2.50 रुपये से 3 रुपये प्रति किलो. इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी होती है और खेत भी साफ रहते हैं. यानी, पर्यावरण भी सुरक्षित और जेब में भी फायदा.

stubble

पराली से बने प्रोडक्ट

सरकार से मिला सम्मान, युवाओं के लिए बनी मिसाल

शुभम सिंह की यह पहल इतनी सफल रही कि राज्य सरकार  ने भी उन्हें मुख्यमंत्री सम्मान पुरस्कार से नवाजा. आज उनका स्टार्टअप क्रास्टे देशभर में एक उदाहरण बन गया है. शुभम के साथ उनकी टीम में कई युवा इंजीनियर भी जुड़े हुए हैं. इंजीनियर श्रेय वर्मा बताते हैं कि हम सिर्फ बिजनेस नहीं, बल्कि एक हरित आंदोलन चला रहे हैं. हर एक प्रोडक्ट से हम पर्यावरण को थोड़ा और साफ बना रहे हैं.

युवाओं के लिए सीख-अपनी मिट्टी में है असली सफलता

लंदन की नौकरी छोड़कर गांव लौटना किसी के लिए आसान फैसला नहीं होता, लेकिन शुभम सिंह ने दिखा दिया कि असली संतोष वहीं मिलता है, जहां अपनी जड़ें हों. आज उनका स्टार्टअप न केवल किसानों की कमाई  बढ़ा रहा है, बल्कि देश को प्लास्टिक-मुक्त बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. उनकी कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो सोचता है कि सफलता सिर्फ विदेश में या बड़ी कंपनियों में मिलती है. शुभम ने दिखाया-अगर सोच साफ हो, तो पराली जैसी राख भी सोना बन सकती है.

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Published: 11 Nov, 2025 | 06:55 PM

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