Farming Tips: भारत को सदियों से “मसालों की भूमि” कहा जाता है, और इसी भूमि की पहचान में एक खास नाम जुड़ा है धनिया. चाहे रसोई की खुशबू हो या सेहत का खजाना, धनिया हर घर की जरूरत है. इसके बीज और पत्तियां न केवल भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं, बल्कि इसके औषधीय गुण शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं. यही कारण है कि आज धनिया की खेती किसानों के लिए मुनाफे का बेहतर साधन बन गई है.
भारत में धनिया का महत्व
धनिया (Coriander) एक प्रमुख मसाला फसल है जिसकी खेती भारत के लगभग हर राज्य में की जाती है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक धनिया उत्पादन के लिए प्रमुख राज्य हैं. भारत धनिया उत्पादन और निर्यात दोनों में अग्रणी है, इसका बड़ा हिस्सा जापान, ब्रिटेन, श्रीलंका, अमेरिका और मलेशिया जैसे देशों को भेजा जाता है, जिससे हर साल विदेशी मुद्रा की अच्छी आमद होती है.
मध्य प्रदेश धनिया उत्पादन में अग्रणी राज्यों में से एक है. यहां लगभग 1,16,000 हेक्टेयर में धनिया की खेती होती है, जिससे सालाना करीब 1.85 लाख टन उत्पादन मिलता है. गुना, शाजापुर, मंदसौर, राजगढ़ और विदिशा जैसे जिले इस फसल के बड़े केंद्र हैं.
बुवाई का सही समय और तरीका
धनिया की खेती रबी सीजन में की जाती है. अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक बुवाई का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है. दानों के लिए नवंबर के पहले पखवाड़े में बुवाई सबसे अच्छी रहती है, जबकि हरे पत्तों के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक बुवाई की जा सकती है.
बुवाई से पहले बीजों को हल्का रगड़कर दो हिस्सों में तोड़ लें, ताकि अंकुरण अच्छा हो. बीजों को पंक्तियों में बोना अधिक लाभदायक रहता है. पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज की गहराई 2-3 सेंटीमीटर होनी चाहिए, ताकि अंकुरण सही तरीके से हो सके.
उर्वरक और खाद का उपयोग
धनिया की अच्छी पैदावार के लिए खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद डालना जरूरी है. असिंचित फसल के लिए 20 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर के साथ 40 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश डालें. सिंचित फसल में यह मात्रा थोड़ी अधिक रहती है. मिट्टी की जांच के अनुसार सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए ताकि फसल मजबूत और रोगमुक्त रहे.
रोग और कीट प्रबंधन
धनिया की फसल में कुछ प्रमुख रोग जैसे माहू (एफिड), उकठा (विल्ट) और भभूतिया (पाउडरी मिल्ड्यू) नुकसान पहुंचाते हैं. माहू पौधे के रस को चूसकर फूल और बीज बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है. इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड या डायमेथियोट का छिड़काव प्रभावी होता है.
विल्ट रोग मिट्टी से फैलने वाला कवकजनित रोग है, जो पौधे को सूखने पर मजबूर करता है. इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम या हेक्जाकोनाजोल का छिड़काव किया जा सकता है.
सिंचाई और फसल की देखभाल
धनिया के पौधे को नियमित नमी की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई बुवाई के 10 दिन बाद करनी चाहिए, और उसके बाद हर 15-20 दिन के अंतराल पर पानी देना आवश्यक है. फूल लगने और बीज बनने के समय पर्याप्त नमी बनाए रखना बेहद जरूरी होता है.
खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें. इससे पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व मिलते हैं और पैदावार में बढ़ोतरी होती है.
फसल की कटाई और भंडारण
जब धनिया के पौधे हल्के पीले रंग के हो जाएं, तो यह कटाई का सही समय होता है. कटाई के बाद गुच्छों को 2-3 दिन धूप में सुखाएं और फिर छांव में रखें. बीजों को सूखने के बाद साफ बोरियों में पैक करके सूखे और ठंडे स्थान पर रखें. नमी से बचाव के लिए कोल्ड स्टोरेज का भी उपयोग किया जा सकता है.
धनिया की खेती से किसानों को फायदा
सही तकनीक अपनाने पर धनिया की खेती से किसान 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. कम लागत और अधिक मुनाफे की वजह से यह मसाला फसल किसानों की आमदनी बढ़ाने का अच्छा जरिया बन रही है.
धनिया सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि किसानों के लिए सुगंध और समृद्धि का प्रतीक है, जिसकी खुशबू खेतों से लेकर दुनिया भर के रसोईघरों तक पहुंच रही है.