जब भारत ने पूरी दुनिया को पहनाया कपास का कपड़ा, जानिए कौन है इसकी खेती करने वाला पहला किसान?

जब विदेशी व्यापारियों ने भारत से कपास खरीदी, तो उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि यह पौधे से निकलती है. इस रहस्य ने कई मजेदार कहानियों को जन्म दिया. यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा कि भारत में ऐसे पेड़ हैं, जिनसे भेड़ों का ऊन निकलता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 7 Oct, 2025 | 01:21 PM

World Cotton Day: कपास सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, परंपरा और आर्थिक इतिहास का एक अहम हिस्सा है. धरती पर जब इंसानों ने खेती शुरू की, तब कपास भी उन्हीं शुरुआती फसलों में शामिल थी. पुरातत्व में मिले साक्ष्य बताते हैं कि लगभग 8,000 साल पहले पेरू में लोग कपास के रेशों से कपड़े बनाते थे. वहीं, मेक्सिको की गुफाओं में 7,500 साल पुराने कपास के बीज मिले हैं.

भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में भी 5,000 साल पहले कपास की खेती होती थी. मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान सूती कपड़े के टुकड़े और सूत कातने की तकली मिली है, जो यह साबित करती है कि भारत कपास उत्पादन में दुनिया का अग्रदूत था.

ऋग्वैदिक ऋषि गृत्समद ने की कपास की शुरुआत

ऋग्वेद में कपास का उल्लेख स्पष्ट रूप से मिलता है. माना जाता है कि ऋषि गृत्समद ने सबसे पहले कपास की खेती की और उसके रेशों से सूत बनाया. यही भारत की टेक्सटाइल क्रांति की शुरुआत थी. उस दौर में कपास को “करपस” कहा जाता था, और इसे पवित्रता, समृद्धि और सुंदरता का प्रतीक माना जाता था.

सफेद सोना: कपास की अनमोल पहचान

कपास से मिलने वाले रेशे से रूई और उससे सूती धागे बनते हैं. इन्हीं धागों से नर्म-मुलायम कपड़े तैयार होते हैं जो गर्मियों में ठंडक देते हैं और सर्दियों में गर्म रखते हैं. इसकी बहुमुखी उपयोगिता के कारण ही इसे “सफेद सोना” (White Gold) कहा गया. भारत के पारंपरिक परिधानों धोती, साड़ी, कुर्ता, चादर, रजाई सभी का आधार यही कपास रहा है.

कुतुनसेकॉटनतक की यात्रा

पहली सदी में अरब व्यापारियों ने भारत से कपास खरीदकर पूरी दुनिया में बेचना शुरू किया. अरबी में कपास कोकुतुनकहा गया, जो अंग्रेजी मेंकॉटनबन गया. इसके बाद रोम और ग्रीस तक भारतीय सूती कपड़े पहुंचने लगे.

रोम की रानियों को भारतीय सूती कपड़े इतने पसंद आए कि वे इन्हें सोना और मोती देकर खरीदती थीं. उस समय भारत से हर साल 20 लाख सोने के सिक्के रोम भेजे जाते थे. इससे रोम का खजाना खाली होने लगा और दुनिया का पहला ट्रेड बैन भारत के कॉटन पर लगा.

कपास को लेकर बने मजेदार किस्से

जब विदेशी व्यापारियों ने भारत से कपास खरीदी, तो उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि यह पौधे से निकलती है. इस रहस्य ने कई मजेदार कहानियों को जन्म दिया. यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा कि भारत में ऐसे पेड़ हैं, जिनसे भेड़ों का ऊन निकलता है.

14वीं सदी में यूरोपीय यात्री जॉन मैंडविल ने लिखा कि भारत में ऐसे पेड़ होते हैं जिनकी शाखाओं पर छोटे-छोटे मेमने लटकते हैं और वहीं से कपास मिलती है! यह दिखाता है कि भारतीय कपास को लेकर यूरोप में कितनी जिज्ञासा और आकर्षण था.

मलमल: भारत की कला और कौशल की मिसाल

भारत की ढाका की मलमल दुनिया भर में प्रसिद्ध थी. यह इतनी महीन होती थी कि एक पूरी साड़ी अंगूठी के बीच से निकल जाती थी. मुगल रानियों से लेकर नेपोलियन की पत्नी तक इसकी दीवानी थीं.

मसूलीपट्टनम’ (आज का मछलीपट्टनम) से इस मलमल का व्यापार होता था. धीरे-धीरे अंग्रेजों ने भारत की कपड़ा उद्योग को बर्बाद करने के लिए मलमल के कारीगरों और पौधों को खत्म कर दिया. इससे भारत की टेक्सटाइल कला को गहरा आघात पहुंचा.

कपास से बनी खाकी और आजादी की खादी

1846 में अंग्रेजों ने कॉटन से पहली बार खाकी वर्दी बनाई. इसका रंग मिट्टी जैसा होने के कारण इसेखाकीकहा गया. धीरे-धीरे यह पुलिस और सेना की पहचान बन गई.

फिर आया महात्मा गांधी का दौर,  जिन्होंने कपास को आंदोलन का प्रतीक बना दिया. उन्होंने चरखा और खादी के जरिए स्वदेशी को बढ़ावा दिया. 1921 में गांधीजी ने विदेशी कपड़ों की होली जलाकर भारत के लोगों को अपने कपास से बने कपड़े पहनने का आह्वान किया.

कपास से आत्मनिर्भर भारत

आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है. देश के लाखों किसान इसे उगाकरकेवल अपनी जीविका चला रहे हैं, बल्कि वस्त्र उद्योग में अरबों डॉलर का निर्यात कर रहे हैं.

कपास सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि भारत की पहचान है, एक ऐसी फसल जिसने सभ्यता, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और स्वतंत्रता, सबको जोड़ने का काम किया.

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Published: 7 Oct, 2025 | 01:09 PM

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