Karwa Chauth Festival 2025: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के भोजपुर में स्थित चौथ माता मंदिर इन दिनों करवा चौथ के मौके पर श्रद्धा और आस्था का केंद्र बन गया है. यहां सुबह से शाम तक सुहागिन महिलाओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं. सभी के हाथों में पूजा की थाली, माथे पर सिंदूर और होंठों पर एक ही प्रार्थना- पति की लंबी उम्र हो, सुहाग अमर रहे.
राजा भोज की रानी ने की थी पूजा, तब शुरू हुई परंपरा (Karwa Chauth Story)
कहा जाता है कि यह मंदिर राजा भोज के समय का है. राजा भोज को कुष्ठ रोग (कोढ़) हुआ था. उनकी पत्नी ने अपने पति के स्वस्थ होने और दीर्घायु के लिए चौथ माता की आराधना की थी. तभी से करवा चौथ पर इस मंदिर में पूजा का चलन शुरू हुआ. इमलिया गांव में बने इस मंदिर को लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं.
तीन प्रसिद्ध चौथ माता मंदिरों में से एक
भारत में करवा चौथ माता के तीन प्रमुख मंदिर माने जाते हैं- एक राजस्थान के सवाई माधोपुर में, दूसरा मध्य प्रदेश के उज्जैन में और तीसरा रायसेन जिले के भोजपुर में.
भोजपुर का यह मंदिर बाकी दोनों से अलग इसलिए है क्योंकि यह पूरे साल खुला रहता है, जबकि उज्जैन वाला मंदिर सिर्फ करवा चौथ के दिन खुलता है.
मंदिर से जुड़ी रहस्यमयी कहानी- सुबह आता है शेर
स्थानीय लोग बताते हैं कि हर दिन सुबह 4 से 5 बजे के बीच एक शेर मंदिर के पास आता है. पुजारी मोहनदास बैरागी का कहना है कि कई बार मंदिर के सामने या सड़क किनारे शेर के पंजों के निशान मिले हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यह शेर माता का वाहन है, जो हर दिन माता के दर्शन करने आता है.
चौथ माता ने सुनी मनोकामना- महिलाओं के अनुभव
गांव की महिला भारती कहती हैं, 35 साल से मेरे पति की तबीयत खराब थी, लेकिन चौथ माता की कृपा से अब वो बिल्कुल ठीक हैं. स्थानीय महिला सावित्री विश्वकर्मा बताती हैं, हर साल मैं निर्जला व्रत रखती हूं, चौथ माता के दर्शन से मन को शांति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
दो पहाड़ियों के बीच बसे मंदिर की प्राकृतिक खूबसूरती
यह मंदिर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है. पास में ही भोजपुर का प्रसिद्ध शिवलिंग और पार्वती मंदिर है. कहा जाता है कि राजा भोज ने नौ नदियों और निन्यानवे नालों को मिलाकर बांध बनवाया था, जिसका जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता था. उसी जलमार्ग के पास चौथ माता की स्थापना की गई थी.
सुहागिनों की आस्था का केंद्र बना भोजपुर
करवा चौथ के दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है. महिलाएं सजे हुए थाल लेकर माता के दर्शन करने आती हैं और शाम को चांद निकलने तक व्रत रखती हैं.
ऐसी मान्यता है कि जो महिला चौथ माता की सच्चे मन से पूजा करती है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और उसका सुहाग अटल रहता है.