Kashmir Walnut: कश्मीर घाटी की अखरोट उद्योग कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थी, लेकिन आज यह कई चुनौतियों से जूझ रही है. कमजोर बुनियादी ढांचा, आधुनिक प्रसंस्करण सुविधाओं का अभाव और विदेशी अखरोट के बढ़ते आयात ने उद्योग को कठिन स्थिति में डाल दिया है. जम्मू और कश्मीर भारत में उत्पन्न कुल 3.2 लाख मीट्रिक टन अखरोट का लगभग 95 प्रतिशत उत्पादन करता है. देश में 1,09,000 हेक्टेयर क्षेत्र में अखरोट की खेती होती है, जिसमें से 89,000 हेक्टेयर क्षेत्र केवल कश्मीर में है.
अधूरी सुविधाओं और बाजार की कमी
अखरोट उद्योग का सबसे बड़ा संकट आधुनिक प्रसंस्करण और पैकेजिंग सुविधाओं की कमी है. कई प्रसंस्करण इकाइयों के बंद होने से किसानों को उत्पाद सही दाम पर बेचने में मुश्किल हो रही है. पुलवामा के एक किसान ने बताया, “कुछ इकाइयां इसलिए बंद हुईं क्योंकि हम कैलिफोर्निया, चीन और चिली से आने वाले अखरोट के मुकाबले टिक नहीं पाए.”
ड्राई फ्रूट एसोसिएशन ऑफ कश्मीर के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान ने कहा कि 5 प्रतिशत जीएसटी ने उद्योग पर अतिरिक्त दबाव डाला है. किसानों का कहना है कि बिना नियोजित आपूर्ति श्रृंखला और मंडी के, उन्हें अपना उत्पाद निचले दामों पर बेचना पड़ता है.
फसल के बाद का प्रबंधन और चुनौतियां
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पोस्ट-हार्वेस्ट हैंडलिंग कड़ी की सबसे कमजोर कड़ी है. ज्यादातर किसान अखरोट को हाथों से सुखाते हैं, अक्सर अस्वच्छ परिस्थितियों में, और पुराने शेलिंग तकनीक का उपयोग करते हैं जिससे निर्यात मूल्य कम हो जाता है. मानक ग्रेडिंग, ब्रांडिंग और गुणवत्ता नियंत्रण की कमी से बाजार प्रतिस्पर्धा सीमित रह जाती है.
किसानों का कहना है कि आधुनिक प्रसंस्करण क्लस्टर और मार्केटिंग प्लेटफॉर्म के निवेश से ही उद्योग को पुनर्जीवित किया जा सकता है.
कश्मीर की अखरोट की विशेष किस्में
कश्मीर में तीन प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं-वोंथ, कागजी और बुरजुल. वोंथ किस्म की कठोर खोल और छोटा बीज मुख्य रूप से तेल निकालने के लिए उपयोग होती है. कागजी किस्म पतली खोल और आसानी से निकलने वाले बीज के कारण लोकप्रिय है. बुरजुल किस्म गहरे रंग और बेहतर स्वाद के लिए जानी जाती है.
किसानों का कहना है कि इन खासियतों के बावजूद ब्रांडिंग और निर्यात प्रचार की कमी के कारण उन्हें बेहतर कीमत नहीं मिलती. अनंतनाग के किसान रिजवान अहमद कहते हैं, “हमारे अखरोट पूरी तरह ऑर्गेनिक हैं और तेल की मात्रा भी आयातित अखरोट से बेहतर है, लेकिन पैकेजिंग और प्रसंस्करण की कमी से हम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार दोनों में नुकसान उठाते हैं.”