इस बार खेत में गेहूं नहीं इस फसल की करें बुवाई, मिट्टी बन जाएगी ‘सोना’.. दोगुना से भी ज्यादा होगा फायदा

मसूर के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है और खेत में पानी निकासी अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव इससे नुकसान पहुंचा सकता है. यह फसल ठंडी और सूखी जलवायु में अच्छी होती है और 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसकी बढ़वार सबसे बेहतर होती है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 14 Oct, 2025 | 05:47 PM

Lentil Farming: देश में लाखों किसान हर साल एक खेत में धान-गेहूं जैसी एक ही फसल उगा रहे हैं. इससे उम्मीद के मुताबिक, पैदावार नहीं मिल रही है. ऐसे में किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. अब किसानों को समय के साथ फसल बदले की जरूरत है. यानी अगर कोई किसान एक खेत में हर साल गेहूं की बुवाई कर रहा है, तो अब उसे इस बार मसूर की खेती करनी चाहिए. उनके लिए मसूर एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभर सकती है. क्योंकि मसूर एक ऐसी दाल है जिसकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश में ऐसे कई किसान हैं, जो गेहूं के बजाए मसूर की खेती  कर रहे हैं. इससे उन्हें उम्मीद से ज्यादा फायदा हो रहा है. कई किसानों का कहना है कि मसूर की खेती से उनकी आर्थिक हालत सुधरी है और अब वे हर सीजन में इसका रकबा बढ़ा रहे हैं. मसूर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे कम पानी और कम देखभाल में भी अच्छी उपज मिलती है. यह रबी सीजन की फसल है, जिसे अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है और मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है. इसकी जड़ों में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी को उपजाऊ  बनाते हैं.

ये हैं मसूर की उन्नत किस्में

मसूर के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है और खेत में पानी निकासी अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि जलभराव इससे नुकसान पहुंचा सकता है. यह फसल ठंडी और सूखी जलवायु में अच्छी होती है और 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसकी बढ़वार सबसे बेहतर होती है. इसलिए मसूर की खेती  के लिए किसान अच्छी गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करें. भारत में मसूर की प्रमुख किस्मों में MPL-62, JL-3 और Pusa-1201 काफी लोकप्रिय हैं. एक हेक्टेयर खेत के लिए करीब 35 से 40 किलो बीज काफी होते हैं. बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवा से जरूर उपचारित करें, ताकि फसल को बीमारियों से बचाया जा सके.

2 से 3 बार सिंचाई की जरूरत

मसूर की फसल में सिंचाई कम लगती है. सिर्फ 2 से 3 बार सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है. पहली सिंचाई फूल आते समय और दूसरी दाना बनने के वक्त करें. जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट  का इस्तेमाल करने से पैदावार और फसल की गुणवत्ता दोनों बढ़ती हैं. फसल में पत्ती झुलसा, फफूंद और कीट लग सकते हैं. इससे बचने के लिए समय-समय पर नीम तेल जैसे जैविक उपायों का छिड़काव करें. इससे फसल सुरक्षित रहती है और रसायनों के अवशेष भी नहीं रहते.

10 से 15 क्विंटल मिलेगी उपज

मसूर की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है और इसका रेट 100 से 130 रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकता है. अगर किसान एक हेक्टेयर में मसूर की खेती करते हैं, तो उन्हें करीब 10 से 15 क्विंटल उपज मिल सकती है. इससे 1.2 से 1.8 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है, जबकि खर्च सिर्फ 25 से 30 रुपये हजार होता है. यानी मुनाफा दोगुना से भी ज्यादा.

 

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Published: 14 Oct, 2025 | 05:44 PM

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