Wheat Seed Purification: अगले महीने यानी नवंबर से बिहार औप उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में गेहूं की बुवाई शुरू हो जाएगी. लेकिन किसान बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करें. इससे बीजों को दीमक, फफूंद और दूसरे रोगों से बचाव होगा और फसल बेहतर तरीके से उगेगी. खास बात यह है कि बीज उपचार से न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि खेती की लागत भी कम हो जाएगी. मतलब, थोड़ी सी सावधानी से किसानों को ज्यादा उत्पादन और ज्यादा फायदा मिलेगा. साथ ही कम खर्च में ही बेहतर खेती हो जाएगी.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ज्यादा मात्रा में खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत बिगड़ गई है. इससे खेतों में फफूंद और बैक्टीरिया बढ़ने लगे हैं, जो फसलों में कई तरह की बीमारियां फैला रहे हैं. इन रोगों की वजह से फसल की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में तेजी से गिरावट आने लगती है. ऐसे में इन समस्याओं से बचने का सबसे असरदार तरीका है बीज का सही तरीके से उपचार करना. इसलिए किसान गेहूं की बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करें, ताकि फसल स्वस्थ रहे और उत्पादन बेहतर हो.
इस तरह करें बीज का शोधन
अगर आप जैविक तरीके से बीज का उपचार करना चाहते हैं, तो सबसे पहले अच्छी क्वालिटी के बीज चुनें. इसके बाद ट्राइकोडर्मा नामक जैविक फंगस का इस्तेमाल करें. इसे 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजों को शोधित करें. वहीं अगर आप रासायनिक विधि अपनाना चाहते हैं, तो कारबेंडाजिम दवा का उपयोग कर सकते हैं. इसे सिर्फ 2 ग्राम प्रति किलो बीज की मात्रा में ही मिलाएं. कारबेंडाजिम से बीज को फफूंद से बचाव मिलता है. इसके अलावा, अगर आपको दीमक की आशंका है तो बीज को क्लोरीपायरीफॉस दवा से भी शोधित किया जा सकता है. ये छोटे-छोटे कदम फसल को शुरुआत से ही सुरक्षित बनाते हैं और पैदावार में सुधार लाते हैं.
गेहूं की इन किस्मों की बरें बुवाई
वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं की बुवाई के लिए 15 नवंबर से समय सबसे बेहतर रहता है. किसान हमेशा गेहूं की उन्नत और ज्यादा उपज देने वाली किस्मों की ही बुवाई करें. अगर किसान चाहें, तो HD-2967, HD-3086, DBW-88, WH-110S और WH-711 जैसी उन्नत किस्मों की बुवाई कर सकते हैं. इन किस्मों से अच्छी पैदावार मिलती है और फसल में रोग भी कम लगते हैं. साथ ही, बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करें, क्योंकि ये बीजों को कीड़ों और बीमारियों से बचाने वाली रामबाण दवा की तरह काम करता है. इससे फसल की शुरुआत से ही अच्छी बढ़वार होती है और उत्पादन भी बेहतर होता है.