Farming Tips: पपीता एक पोषक तत्वों से भरपूर फल है, जिसे भारतीय किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में उगाते हैं. लेकिन कई बार किसान इस फल की पैदावार में अचानक गिरावट का सामना करते हैं. इसका मुख्य कारण अक्सर मिट्टी में बोरोन (Boron) की कमी होती है. बोरोन एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, लेकिन इसकी कमी के कारण पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन पर गंभीर असर पड़ता है. इस लेख में हम जानेंगे कि बोरोन की कमी के लक्षण क्या हैं, इसका कारण क्या है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है.
बोरोन क्यों है जरूरी
बोरोन पौधों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. यह पौधों में कई जैविक क्रियाओं में योगदान देता है. सबसे पहले यह कोशिका विभाजन में मदद करता है, जिससे पौधे का विकास सही ढंग से होता है. इसके अलावा, बोरोन फूल और फलों के विकास में भी सहायक होता है. यह परागण और बीज निर्माण के लिए भी जरूरी है. पौधों में शर्करा (sugar) के परिवहन को नियंत्रित करने में बोरोन की बड़ी भूमिका होती है, जिससे फल मीठे और पूरी तरह विकसित होते हैं.
पपीते में बोरोन की कमी के लक्षण
बोरोन की कमी के कारण पपीते के पौधों में कई समस्या दिखाई देती हैं. सबसे पहले फल विकृत हो सकते हैं, छोटे या टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं. इसके अलावा फलों में दरार (Cracking) आ सकती है, जिससे उनकी बिक्री पर असर पड़ता है. तने नरम हो जाते हैं, जिससे पौधा गिर सकता है.
नए पत्ते पूरी तरह विकसित नहीं होते और अक्सर पीले या मुड़े हुए दिखाई देते हैं. इसके अलावा फूल झड़ने लगते हैं और बढ़वार रुक जाती है. अगर समय रहते इलाज नहीं किया गया तो उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है.
बोरोन की कमी का समाधान
समस्या का समाधान शुरू होता है मिट्टी परीक्षण से. खेत की मिट्टी में बोरोन की मात्रा जांचना जरूरी है ताकि सही मात्रा में पोषण दिया जा सके. बोरोन उर्वरक, जैसे बोरैक्स (Borax), मिट्टी में मिलाकर या पानी में घोल बनाकर फोलिएर स्प्रे किया जा सकता है. इसके लिए 10–15 किग्रा प्रति हेक्टेयर मात्रा उपयुक्त मानी जाती है.
फोलिएर स्प्रे के लिए 0.2 फीसदी बोरोन (बोरिक एसिड या सॉल्युबल बोरॉन) पानी में मिलाकर हर 15–20 दिन पर छिड़काव करें. इसके अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, कैल्शियम और मैग्नीशियम का संतुलन बनाए रखना भी जरूरी है. जैविक उपायों में गाय के गोबर की खाद या कंपोस्ट में बोरॉन युक्त खनिज मिट्टी मिलाना फायदेमंद है.
किसानों के लिए सुझाव
किसानों को यह सलाह दी जाती है कि पपीते के पौधों में बोरोन की कमी के लक्षण दिखाई देते ही तुरंत कार्रवाई करें. हर छह महीने में पत्तियों की पोषक तत्व जांच कराना जरूरी है. उर्वरकों का संतुलन बनाए रखें, क्योंकि बहुत अधिक कैल्शियम या नाइट्रोजन बोरोन के अवशोषण में रुकावट डाल सकते हैं.
पपीते में बोरोन की कमी दिखने में छोटी लग सकती है, लेकिन इसका असर उत्पादन और फलों की गुणवत्ता पर बहुत बड़ा होता है. समय पर पहचान कर सही तरीके से प्रबंधन करने से किसान अपनी फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं.
सही बोरोन प्रबंधन से पपीते की खेती न केवल आसान हो जाती है, बल्कि फलों का आकार और मिठास भी बेहतर होता है. इस तकनीक का पालन करके किसान अपनी फसल से अधिक उत्पादन और आय प्राप्त कर सकते हैं.